याद आ रही माँ

15-05-2022

याद आ रही माँ

डॉ. आरती स्मित (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

(विविध चैनलों से प्रसारित एवं चतुर्थ कविता संग्रह ‘मायने होने के’ (२०२१) से उद्धृत  कविताएँ)
(प्रेषक: अंजु हुड्डा)

 
संझाई माँ    
गोधूलि आँखों से 
देख रही  रस्ता
दिन का
 
बरसों बीत गए हों मानो
क़तरा- क़तरा लम्हे में
... ... 
लम्हा इंतज़ार का!
 
माँ के इंतज़ार का लम्हा
युगों समो लेता है ख़ुद में
और
लेकर अंगराई
आगे  बढ़ जाता है
बेटे के साथ
 
संझाई माँ
धीरे-धीरे 
ढल जाती है रात में
रात फैलने लगती है 
सुरसा के मुँह की तरह
... 
 
माँ उसके जबड़ों तले दबी
दुआ भेजती है उजास की
 
उम्र की ढलान पर
दिन को याद आ रही है
......  माँ !

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