अनाथ पत्ता
डॉ. आरती स्मितमैं हूँ
शाख- विहीन
एक अनाथ पत्ता!
बेबुनियाद --–अस्तित्वहीन।
कल तक,
मैं था
निश्चिंत, प्रमुदित
पेड़ की शाख से जुड़ा
जीवन–रस पाता हुआ;
कल तक,
समझ ना सका महत्व
जड़ से जुड़ाव का;
वंश के पोषण का,
विद्रोह की आँधी चली
और मैं,
दिशाहीन!
प्रतिकूल दशा में
क्षत-विक्षत पड़ा हूँ
भूमि पर
और कोई
देखता तक नहीं।