अनाथ पत्ता
डॉ. आरती स्मितमैं हूँ
शाख- विहीन
एक अनाथ पत्ता!
बेबुनियाद --–अस्तित्वहीन।
कल तक,
मैं था
निश्चिंत, प्रमुदित
पेड़ की शाख से जुड़ा
जीवन–रस पाता हुआ;
कल तक,
समझ ना सका महत्व
जड़ से जुड़ाव का;
वंश के पोषण का,
विद्रोह की आँधी चली
और मैं,
दिशाहीन!
प्रतिकूल दशा में
क्षत-विक्षत पड़ा हूँ
भूमि पर
और कोई
देखता तक नहीं।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- पत्र
- सामाजिक आलेख
- कहानी
-
- अँधेरी सुरंग में . . .
- गणित
- तलाश
- परित्यक्त
- पाज़ेब
- प्रायश्चित
- बापू और मैं – 001 : बापू का चश्मा
- बापू और मैं – 002 : पुण्यतिथि
- बापू और मैं – 003 : उन्माद
- बापू और मैं–004: अमृतकाल
- बापू और मैं–005: जागरण संदेश
- बापू और मैं–006: बदलते चेहरे
- बापू और मैं–007: बैष्णव जन ते ही कहिए जे . . .
- बापू और मैं–008: मकड़जाल
- बेज़ुबाँ
- मस्ती का दिन
- साँझ की रेख
- व्यक्ति चित्र
- स्मृति लेख
- कविता
-
- अधिकार
- अनाथ पत्ता
- एक दीया उनके नाम
- ओ पिता!
- कामकाजी माँ
- गुड़िया
- घर
- ज़ख़्मी कविता!
- पिता पर डॉ. आरती स्मित की कविताएँ
- पिता होना
- बन गई चमकीला तारा
- माँ का औरत होना
- माँ की अलमारी
- माँ की याद
- माँ जानती है सबकुछ
- माँ
- मुझमें है माँ
- याद आ रही माँ
- ये कैसा बचपन
- लौट आओ बापू!
- वह (डॉ. आरती स्मित)
- वह और मैं
- सर्वश्रेष्ठ रचना
- ख़ामोशी की चहारदीवारी
- ऐतिहासिक
- साहित्यिक आलेख
- बाल साहित्य कहानी
- किशोर साहित्य नाटक
- गीत-नवगीत
- पुस्तक समीक्षा
- अनूदित कविता
- शोध निबन्ध
- लघुकथा
- यात्रा-संस्मरण
- विडियो
- ऑडियो
-