मंजुश्री के नाम पत्र
डॉ. आरती स्मितप्रिय मंजु,
अशेष शुभाशीष!
जन्मदिन की अशेष बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!
दो वर्ष पूर्व जीवन के मोड़ पर मुझे दस्तक देती तुम मिली। यक़ीन मानो, भले ही तुमने दस्तक औपचारिक द्वार पर दी थी, मगर उसकी गूँज भीतर तक पहुँची और तुम अंतस् के उस कक्ष में जा पहुँची जहाँ तुम्हारे लिए अथाह वात्सल्य उमड़ा करता है। तुमने उस कमरे में ऐसी पैठ बना ली कि चाहूँ तो भी जाने को नहीं कह सकती। तुम एक सुलझी हुई, प्रेममयी पत्नी, बहू, माँ ही नहीं, वात्सल्यमयी मार्गदर्शक शिक्षिका भी हो . . . और जिज्ञासु छात्रा भी। मैं देख पाती हूँ तुम्हें . . . तमाम दायित्वों का मुस्कुराकर वहन करते हुए . . . और देख पाती हूँ उस नन्ही बालिका को जो मेरे समक्ष (फोन पर ही सही) प्रकट होती है, जो अपनी अस्मिता के साथ दृढ़तापूर्वक खड़ी, अपनी और भावी संततियों की उड़ान को तय करने तथा दिशा देने हेतु संकल्पित है।
मंजु! मेरे लिए तुम महज़ शोधार्थी नहीं, (जिसे केवल आभासी दुनिया में देखा है) बल्कि मेरे भीतर प्रवाहित वात्सल्य की तमाम धाराओं की समग्रता हो . . . तमाम तंतुओं का पुंज। तुमने मुझे ‘गुरु’ माना, मैंने तुम्हें ‘बेटी’। इन दोनों संबंधों में भावों को गूँथकर आज तुम्हें उपहार देती हूँ। उपहार उन आशीषों का, जिनको प्राप्त करने वाले पात्र कोई-कोई हुआ करते हैं। तुम नेकदिल, सच्ची, ईमानदार और कर्मठ हो। इसलिए कुछ भाव-पुष्प तुम्हें सौंपती हूँ और मातृवत् बलैया लेती हूँ . . .
-
सत्यनिष्ठ तुम, सदैव सत्य की राह चलती रहना। कई मोड़ आएँगे . . . लुभावने मोड़, मगर डिगना मत। तुम्हारा हर निर्णयात्मक क़दम तुम्हारी संतानों और छात्रों को दिशा देगा।
-
मानवता की पर्याय और पोषक बनी रहना। निजी लाभ के लिए बूँद भर भी साथ न देना उनका, जिनके मन, वचन और कर्म मानवता को शर्मसार किए है।
-
स्त्री महाशक्ति का प्रतीक है। तुम्हारी आत्मशक्ति क्षणभर को भी कम न हो। प्रेम, शान्ति, शक्ति, आह्लाद, ज्ञान, दिव्यता, सुख और आनंद का अक्षय सोता हर एक के भीतर बहता है, उसे महसूस करो और जलते-तड़पते संसार के लिए उसे प्रवाहित करो। शिवत्व की प्राप्ति हो।
पुत्री!
तुम्हारे जन्मदिन के पावन अवसर पर तुम्हें शब्दों के संसार से निकालकर भावार्थों, निहितार्थों की दुनिया में प्रवेश करने का आमंत्रण दे रही हूँ और हमारे अद्वितीय राष्ट्रपति कलाम साहब की सूक्ति तुम्हें सौंपते हुए पत्र को विराम देती हूँ:
-
उदार बनो पर इस्तेमाल मत होने दो।
-
प्यार करो पर ख़ुद को ठेस मत लगने दो।
-
विश्वास करो पर भोले मत बनो।
-
दूसरों की सुनो, लेकिन अपनी आवाज़ मत खोने दो।
अगाध प्रेम की बग़िया तुम्हारे लिए . . .
शुभाकांक्षा सहित तुम्हारी—
आरती स्मित
03.05.22
1 टिप्पणियाँ
-
आदरणीय मैम प्रणाम, आदरणीय मैम प्रणाम जन्मदिन पर कई संदेश प्राप्त हुए जो मेरे लिए बहुत खास रहे परंतु जो मेरे लिए हृदय स्पर्शी बन गया वह था आपके द्वारा प्रेषित यह पत्र। इसमें स्नेह, आशीर्वाद, सीख, सभी समाहित हैं जो मेरे लिए सदा मार्गदर्शक का कार्य करेंगी। केवल शब्दों में आपका धन्यवाद कर इस ऋण से उरिण नहीं होना चाहती। आपका हृदय तल से धन्यवाद और आभार मैम। आपका स्नेह और आशीर्वाद सदा प्राप्त होता रहे इसी की अभिलाषी हूं। इस पत्र को स्थान देने हेतु अंततः साहित्य कुंज के संपादक आदरणीय सुमन घई जी को भी धन्यवाद । आपकी डॉ. मंजुश्री वेदुला
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- सामाजिक आलेख
- कहानी
-
- अँधेरी सुरंग में . . .
- गणित
- तलाश
- परित्यक्त
- पाज़ेब
- प्रायश्चित
- बापू और मैं – 001 : बापू का चश्मा
- बापू और मैं – 002 : पुण्यतिथि
- बापू और मैं – 003 : उन्माद
- बापू और मैं–004: अमृतकाल
- बापू और मैं–005: जागरण संदेश
- बापू और मैं–006: बदलते चेहरे
- बापू और मैं–007: बैष्णव जन ते ही कहिए जे . . .
- बापू और मैं–008: मकड़जाल
- बेज़ुबाँ
- मस्ती का दिन
- साँझ की रेख
- व्यक्ति चित्र
- स्मृति लेख
- पत्र
- कविता
-
- अधिकार
- अनाथ पत्ता
- एक दीया उनके नाम
- ओ पिता!
- कामकाजी माँ
- गुड़िया
- घर
- ज़ख़्मी कविता!
- पिता पर डॉ. आरती स्मित की कविताएँ
- पिता होना
- बन गई चमकीला तारा
- माँ का औरत होना
- माँ की अलमारी
- माँ की याद
- माँ जानती है सबकुछ
- माँ
- मुझमें है माँ
- याद आ रही माँ
- ये कैसा बचपन
- लौट आओ बापू!
- वह (डॉ. आरती स्मित)
- वह और मैं
- सर्वश्रेष्ठ रचना
- ख़ामोशी की चहारदीवारी
- ऐतिहासिक
- साहित्यिक आलेख
- बाल साहित्य कहानी
- किशोर साहित्य नाटक
- गीत-नवगीत
- पुस्तक समीक्षा
- अनूदित कविता
- शोध निबन्ध
- लघुकथा
- यात्रा-संस्मरण
- विडियो
- ऑडियो
-