बन गई चमकीला तारा

15-05-2022

बन गई चमकीला तारा

डॉ. आरती स्मित (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

(प्रेषक: अंजु हुड्डा)
(आकाशवाणी दिल्ली से प्रसारण के साथ ही विविध मंचों से प्रस्तुत एवं ‘गुरदी देवी सम्मान’ 2018-19 प्राप्त  तीसरे कविता संग्रह ‘तुम से तुम तक’ २०१६ से उद्धृत कविताएँ)  

 
माँ! 
तुम चली 
चिता की रथ पर 
हो सवार 
हुई शून्य में विलीन 
तजकर 
मोह माया लिप्सा भ्रांति 
आँसू और मुस्कान भी!
 
माँ!
तुम चली जा रही
दूर-सुदूर/कितनी दूर 
कि बाबा की पुकार 
पहुँच न पाती तुम तक
ना मेरे निर्बल आँसू 
तुम्हें संदेसा पहुँचा पाते 
कि एक बार 
बस एक बार तो उत्तर दो 
बाबा की पुकार का 
झकझोरो उन्हें समाधि से 
कि तुम्हारे बिना 
वे होकर भी नहीं हैं 
और तुम निर्मोहिनी-सी 
चिता की रथ पर सवार 
अपने आशीषों की 
वर्षा करती हुई 
बढ़ी जा रही गंतव्य की ओर 
और 
देखते ही देखते 
बन गई चमकीला तारा
हाँ माँ!
अब मैं तुम्हें देख पा रही हूँ –
देख पा रही हूँ 
तुम्हारा अप्रतिम आलोक 
सुन पा रही हूँ 
असीम आशीषों की अनुगूँज 
तुम भी मुझे देख रही हो ना!  
                      (मालती माँ को समर्पित)

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
पत्र
कविता
ऐतिहासिक
स्मृति लेख
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कहानी
किशोर साहित्य नाटक
सामाजिक आलेख
गीत-नवगीत
पुस्तक समीक्षा
अनूदित कविता
शोध निबन्ध
लघुकथा
यात्रा-संस्मरण
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में