शोभा श्रीवास्तव मुक्तक - 002
डॉ. शोभा श्रीवास्तव1.
चाँद तो चाँद है, तारों में न ढल पाएगा।
गिरे और उठ न सके वो क्या सँभल पाएगा।
नहीं परवाह अब मौसम के बदल जाने की,
लाख बदले समां, हमको न बदल पाएगा।
2.
रात के काग़ज़ पे हमने देख सूरज लिख दिया।
जो उठा कीचड़ से उसका नाम नीरज लिख दिया।
सिरफिरे मौसम में भी जिसने सँभाला है हमें,
खूबसूरत नाम देकर उसको धीरज लिख दिया।
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