जीवन में बसंत

02-02-2015

जीवन में बसंत

डॉ. शोभा श्रीवास्तव

ऋतु बसंती गुनगुनाने की ख़ता करना नहीं,
आजकल सहमा हुआ, सिहरा हुआ वातावरण है।

 

रंग स्वागत के दिखेंगे हर तरफ तुमको मगर,
भावनाओं पर चढ़ा इक झीना-झीना आवरण है।

 

मुस्कुराती सूरतें अब एक मायाजाल सी हैं,
हास्य का पूरे हृदय से अब नहीं होता वरण है।

 

सपनों, उम्मीदों को ढोता जा रहा है आदमी,
आज के इस दौर का जाने ये कैसा आचरण है।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
गीत-नवगीत
कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में