वो दिन पुराने
मंजु आनंदयाद आते हैं अक़्सर मुझे वह दिन पुराने,
वो भी थे क्या दिन सुहाने,
ना ही था मोबाइल, ना ही लैपटॉप,
ना ही इंटरनेट का ज़माना था,
ना ही था व्हाट्सएप,
ना ही झमेला था यूट्यूब का,
हल्की फुल्की सी थी ज़िन्दगी हमारी,
शिक्षा का सदैव होता था आदर-सत्कार,
काम चल जाता था चिट्ठी-पत्री से ही,
दिखावा कम और अपनापन ज़्यादा था,
बसों में होता था अधिकतर आना-जाना,
नहीं था वह मैट्रो का ज़माना,
नहीं होता था कुछ भी ऑनलाइन,
लाते थे सब कुछ देख परख कर,
नाप तोलकर बाज़ार जाकर,
मन तरसता है याद आते हैं,
आज भी वह गुज़रे पल,
आज की पीढ़ी के लिए तो,
बस वह गुज़रा ज़माना था,
हमने तो उन्हीं पलों को,
जिया था मन भर कर,
याद आते हैं अक़्सर मुझे वह दिन पुराने।
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