जितनी हो चादर

15-12-2021

जितनी हो चादर

मंजु आनंद (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

जितनी हो चादर उतने ही फैलाओ तुम पाँव, 
मत दिखाओ तुम झूठी अपनी शान, 
क्या मिलेगा तुम्हें झूठी वाहवाही से, 
क्यों करते हो मन को अपने तुम अशांत, 
क्या कहेंगें लोग . . . 
यही सोच कर परेशान हो जाते हो, 
लोगों का क्या है लोगों का काम है कहना, 
खाएँगे, पीएँगे, और घर को लौट जाएँगे, 
कुछ लोग तुम्हारी झूठी तारीफ़ों के पुल भी बाँधेंगे, 
हैं यह दुधारी तलवार के जैसे, 
मुँह पर मीठे, पीठ पर ज़हरीला ख़ंजर चुभाएँगे, 
इच्छाओं का क्या है वह तो बढ़ती ही जाती हैं, 
नहीं लेती ख़त्म होने का कभी नाम, 
व्यक्ति को क़र्ज़ के बोझ तले दबाती हैं, 
मन पर तुम अंकुश रखो, 
खींच लो मन की लगाम, 
जितनी हो चादर उतने ही फैलाओ तुम पाँव। 

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