उम्र
मंजु आनंदउम्र का यह कैसा पड़ाव है,
अन्तर्मन की उठती लहरों में,
अजीब सा ठहराव है!
छल रहा है वक़्त भी मुझको,
वक़्त है या कोई दगाबाज़ है!
उम्र लगी है चेहरे पर झलकने,
दिल में उमड़ते अब भी जज़्बात हैं!
उम्र तो है इक उड़ता पंछी,
ना जाने कहाँ तक इसकी परवाज़ है,
उम्र का यह कैसा पड़ाव है!
2 टिप्पणियाँ
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बुढ़ापा शरीर का सच है । मन तो निर्विकार ही रहता है । बहुत सुंदर शब्दावली । बधाई
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बहुत खूब
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