आज फिर

मंजु आनंद (अंक: 188, सितम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

आज फिर दिल रोया, बहने लगे जज़्बात,
आँखों से झर-झर बहते नीर की, होने लगी बरसात,
आज फिर चटका शीशा दिल का,
फिर टूट कर चकनाचूर हुआ,
कानों ने सुना बहुत कुछ,
तानों उलाहनों की पड़ी तेज़ बौछार,
आज फिर एक नश्तर-सा चुभा दिल में,
तीखे बाणों से छलनी-छलनी हो कर,
ज़िंदगी हुई तार-तार,
इतने पर भी यह ना घबराई, ना ही मानी हार,
समेट कर सब कुछ अपनी झोली में चल पड़ी ज़िंदगी,
फिर उसी रास्ते पर एक बार,
जहाँ से हुई थी इस दर्द भरे सफ़र की शुरुआत,
साथ लिए एक विश्वास,
ख़त्म होगी शीघ्र ही,
यह दर्द भरी काली अँधियारी रात,
आज फिर दिल रोया, बहने लगे जज़्बात!

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