एक बूढ़ा इंसान

15-12-2021

एक बूढ़ा इंसान

मंजु आनंद (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

एक बूढ़ा इंसान, 
जब बोझ लगने लगा, 
दुत्कार दिया किसी गली के कुत्ते की तरह उसे घरवालों ने, 
पापी पेट कहाँ तक सहता, 
निकल पड़ा वह ढूँढ़ने काम, 
दर-दर खा रहा ठोकरें, 
लड़खड़ा रहे उसके पाँव, 
हिम्मत बाँध वह चलता रहा, 
हर कोई देखता पास से गुज़र जाता, 
नहीं दिया किसी ने भी उस बूढ़े पर ध्यान, 
घर बार उसका छूट गया था, 
नाता सबसे टूट गया था, 
वह बेचारा भटकता रहा, 
सर्द रातों में ठिठुरता रहा, 
जागकर रात भर सुबकता रहा, 
नहीं कोई हमदर्द मिला, 
आख़िर सो गया चिरनिद्रा में, 
जंग ज़िन्दगी की हार गया, 
वह बूढ़ा इंसान बेदर्द दुनिया के, 
सभी झंझटों से मुक्ति पा ही गया, 
एक बूढ़ा इंसान। 
 

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