कुछ बच्चों का बचपन
मंजु आनंदकुछ बच्चों का बचपन ऐसा भी होता है,
तरसता है रोटी के दो टुकड़ों को,
कचरे से रोटी बीन कर खाता है,
कहाँ मिलता है उन्हें खाने को पिज़्ज़ा बर्गर,
बचपन उनका तो रोटी के चंद टुकड़ों को भी,
तरस जाता है,
सुबह तो उनकी भी होती है,
कभी कभी तो भूखे पेट ही दिन ढल जाता है,
हो जाती है रात,
बचपन बेचारा पानी पीकर सो जाता है,
कभी मिल जाती बासी मिठाई रूखे सूखे पकवान,
बचपन उनका ख़ुश हो जाता है,
नाच नाच कर चलता है ऐसे,
मिल गया हो कुबेर का ख़ज़ाना जैसे,
दुख दर्द सब भूल जाता है,
बासी मिठाई पकवान स्वाद ले-ले कर खाता है,
कहाँ नसीब होते हैं उन्हें महँगे सस्ते खिलौने,
उनका बचपन तो गली मोहल्लों से,
ढूँढ़ ढूँढ़ कर टूटी फूटी बोतलों,
घिसे पुराने टायरों से खेलता है मौज मनाता है,
फटे कपड़ों में घूमता है मिट्टी में लोटता है,
बचपन उनका कभी हँसता कभी रोता है,
बस यूँ ही बड़ा हो जाता है बीत जाता है,
उनका मासूम बचपन,
कुछ बच्चों का बचपन ऐसा भी होता है।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अपनी कुछ किताबों में
- अब आगे क्या होगा
- आँसू
- आईना
- आज फिर
- इंसान क्या है
- उम्र
- उम्र का यह दौर भी . . .
- एक गृहणी
- एक पेड़ था कभी हरा भरा
- एक बूढ़ा इंसान
- एक फ़क़ीर
- कन्यादान
- कबाड़ी वाला
- कविता
- कुछ बच्चों का बचपन
- कैसे जी रहा है
- गोल गोल गोलगप्पे
- चिड़िया
- जितनी हो चादर
- जीवन की शाम
- ढूँढ़ती हूँ भीड़ में
- दस रुपए का एक भुट्टा
- दिल तू क्यूँ रोता है
- दो जून की रोटी
- नया पुराना
- पिता याद आ जाते हैं
- पीला पत्ता
- प्यार की पोटली
- बाबा तुम्हारी छड़ी
- बिटिया
- बिटिया जब मायके आती है
- बूढ़ा पंछी
- मनमौजी
- महानगरों में बने घर बड़े बड़े
- माँ को याद करती हूँ
- माँ मेरे आँसुओं को देखती ही नहीं पढ़ती भी थी
- मायका
- मायाजाल
- मेरा क्या क़ुसूर
- वो दिन पुराने
- सर्कस का जोकर
- सुन बटोही
- हँसी कहाँ अब आती है
- हर किसी को हक़ है
- ख़्वाहिशें
- विडियो
-
- ऑडियो
-