बूढ़ा पंछी

01-06-2022

बूढ़ा पंछी

मंजु आनंद (अंक: 206, जून प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

पुराने पेड़ पर बैठा था एक बूढ़ा पंछी, 
गर्दन अपनी झुकाए हुए, 
देखा ध्यान से तो कुछ दिखा मुझे, 
पंख उसके थे कटे हुए, 
बहुत कमज़ोर हो गया था वह, 
पूछा मैंने तो बोला कुछ इस तरह, 
कुछ निर्मोहियों ने किया है मेरा हाल ऐसा, 
मेरी भी एक टोली थी, 
मिलकर रहते दाना चुगते, 
उन्मुक्त गगन में उड़ते थे, 
धीरे धीरे हुआ में बूढ़ा उड़ने से लाचार हुआ, 
कटे पंखों ने अपाहिज कर दिया, 
टोली वालो के लिए बन गया मैं बोझ, 
मुझसे पाने को छुटकारा, 
उड़ गए सभी छोड़ मुझे इस हाल मैं, 
बस अब बैठा रहता हूँ यूँही बेबस बेसहारा इस डाल पर, 
पुराने पेड़ पर बैठा था एक बूढ़ा पंछी। 

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