पीला पत्ता

15-04-2024

पीला पत्ता

मंजु आनंद (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

पीला मुरझाया सूखा पत्ता, 
सहसा धरती पर आ गिरा, 
उठाया जो मैंने उसे तो चरचराने लगा, 
व्यथा अपनी सुनाने लगा, 
कुछ दिन पहले मैं हिस्सा था एक पेड़ का, 
हरा भरा रखता था उसकी डाली को, 
हवा से लहराती जब डाली, 
झूमता मैं भी मस्त होकर, 
मेरा भी एक वुजूद था, 
समय बीता मैं कमज़ोर होने लगा, 
हरा रंग भी मेरा पीला पड़ने लगा, 
धीरे धीरे मैं सड़ने लगा, 
एक दिन आई आँधी मैं काँपा ज़ोर से, 
डाली से अलग हुआ दोबारा ना जुड़ सका, 
देखता रहा पेड़ देखती रही डाली, 
मैं धरती पर आ गिरा, 
सुना कर अपनी व्यथा पत्ता मौन हो गया, 
आई हवा पत्ता उड़ गया ना जाने कहाँ, 
मैंने सभझ लिया दर्द उसका, 
समझ ली उसकी व्यथा, 
पीला पत्ता मुझे, 
मेरे आने वाले कल से मिलवा गया, 
आने वाला कल उम्र का अंतिम पड़ाव, 
पीला मुरझाया सूखा पत्ता। 

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