कबाड़ी वाला
मंजु आनंदकबाड़ी भी अपनी एक अहमियत रखता है,
जी हाँ, यह कबाड़ी है बहुत काम का,
ले जाता है आपके घर का सारा कबाड़,
क्या पुराना लोहा क्या प्लास्टिक क्या रद्दी अख़बार,
बहुत सँभाल के रखते हो आप यह कबाड़,
जबकि, होता है यह कबाड़ आपके लिए बेकार,
गिन-गिन कर देते हो कबाड़ी को,
एक-एक बोतल एक-एक अख़बार,
ध्यान से देखते हो आप उसका तराजू और बाट,
कहीं हो ना जाए कोई हेरा-फेरी,
कबाड़ का भी करते हो आप मोलभाव,
सोचो, अगर कबाड़ी न ले जाए कबाड़,
तब आप क्या करोगे?
कहाँ रखोगे यह कबाड़?
कबाड़ी कबाड़ तो ले ही जाता है,
बदले में आपको उस कबाड़ का,
मूल्य भी दे जाता है,
यह काम बस एक कबाड़ी वाला ही कर सकता है,
कबाड़ी भी अपनी एक अहमियत रखता है।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अपनी कुछ किताबों में
- अब आगे क्या होगा
- आँसू
- आईना
- आज फिर
- इंसान क्या है
- उम्र
- उम्र का यह दौर भी . . .
- एक गृहणी
- एक पेड़ था कभी हरा भरा
- एक बूढ़ा इंसान
- एक फ़क़ीर
- कन्यादान
- कबाड़ी वाला
- कविता
- कुछ बच्चों का बचपन
- कैसे जी रहा है
- गोल गोल गोलगप्पे
- चिड़िया
- जितनी हो चादर
- जीवन की शाम
- ढूँढ़ती हूँ भीड़ में
- दस रुपए का एक भुट्टा
- दिल तू क्यूँ रोता है
- दो जून की रोटी
- नया पुराना
- पिता याद आ जाते हैं
- पीला पत्ता
- प्यार की पोटली
- बाबा तुम्हारी छड़ी
- बिटिया
- बिटिया जब मायके आती है
- बूढ़ा पंछी
- मनमौजी
- महानगरों में बने घर बड़े बड़े
- माँ को याद करती हूँ
- माँ मेरे आँसुओं को देखती ही नहीं पढ़ती भी थी
- मायका
- मायाजाल
- मेरा क्या क़ुसूर
- वो दिन पुराने
- सर्कस का जोकर
- सुन बटोही
- हँसी कहाँ अब आती है
- हर किसी को हक़ है
- ख़्वाहिशें
- विडियो
-
- ऑडियो
-