बाबा तुम्हारी छड़ी 

01-05-2024

बाबा तुम्हारी छड़ी 

मंजु आनंद (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

बाबा तुम्हारी छड़ी से आज पूछा मैंने, 
क्या तुम्हें भी बाबा की याद आती है, 
बीते वर्षों में तुम ही तो थी साथी उनकी, 
बहुत वक़्त बिताया बाबा ने साथ तुम्हारे, 
तुम्हें लेकर सैर पर जाते थे, 
तुम्हें लेकर घर मेरे आते थे, 
सड़क हो गली हो या फिर, 
उबड़ खाबड़ जगह कोई, 
तुमने उनका बख़ूबी साथ निभाया, 
बड़ी ही हिफ़ाज़त से बाबा रखते थे तुम्हें, 
अब तुम मेरे पास हो, 
बाबा की तस्वीर के निकट ही मैंने रखा है तुम्हें, 
बाबा से मिल नहीं सकती तुम भी मेरी तरह, 
उन्हें महसूस तो करती ही हो ना मेरी तरह, 
छड़ी बेचारी सुनती रही कैसे कुछ कहती, 
भीगती रहीं मेरी आँखें भीग गई बाबा की छड़ी। 

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