सुन बटोही
मंजु आनंद
सुन बटोही,
भटक गया ना राह तू अपनी,
था कोई भलामानुष, रास्ता दिखलाया था तुझे,
तू नहीं चला, भीतर तेरे संशय पला,
की तूने अपनी मनमानी,
तेरी मति गई थी मारी,
समय रहते सचेत हो जाता,
अब तक तो अपनी मंज़िल भी पा जाता,
भलामानुष तो राह दिखला कर चला गया,
तू कभी इस डगर तो कभी उस डगर,
भटकता ही रहा,
अब काहे का पछतावा,
सुन बटोही।
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