एक फ़क़ीर
मंजु आनंदमिला एक फ़क़ीर कह गया बात गहरी,
सुनो सुनाऊँ तुम्हें भी,
मैं फ़क़ीर मेरा काम फ़क़ीरी,
हूँ फिर भी मैं अमीर,
दो रोटी मिल जाती सुबह-शाम,
दो कपड़े मिल जाते तन ढकने को,
फ़िक्र नहीं सर पर छत हो न हो,
रात गुज़र ही जाती मेरी,
मिल जाती है थाह भी कहीं ना कहीं,
कोई चिंता कोई फ़िक्र मैं करता नहीं,
रब पर मेरा भरोसा है,
उठाता है भले ही ख़ाली पेट मुझे वो,
ख़ाली पेट कभी सुलाता नहीं,
रब मेरा मुझसे पहले ही,
हर बात समझ जाता है मेरी,
लुटाता रहता है ख़ज़ाना अपनी रहमत का,
उसकी रहमत से रहती झोली मेरी भरी,
तभी तो मैं कहता सबसे,
हूँ फिर भी मैं अमीर,
मैं फ़क़ीर मेरा काम फ़क़ीरी,
मिला एक फ़क़ीर कह गया बात गहरी।
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