तू बिखर गयी जीवनधारा

01-01-2020

तू बिखर गयी जीवनधारा

सुषमा दीक्षित शुक्ला  (अंक: 147, जनवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

तू बिखर गयी जीवनधारा
हम फिर से तुझे समेट चले

 

तू रोयी थी, घबराई  थी 
उठ-उठ कर  फिर गिर जाती थी
तू डाल-डाल हम पात  चले।
हम फिर से तुझे समेट चले।

 

विपरीत दिशा का भँवरजाल 
नयनों से अविरल अश्रुमाल
प्रतिक्षण तड़पे दिनरात जले।
हम फिर से तुझे समेट चले।

 

प्रियतम का उर में मधुर वास
महसूस किया हर  श्वास-श्वास
फिर वीर पिता से प्रेरित हो
तब वीर सुता बनकर निकले।
हम फिर से तुझे समेट चले।


तू बिखर गयी जीवनधारा
हम फिर से तुझे समेट चले. . .।

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