गज गामिनि वह दर्प दामिनी,
कल कल करती सरिता।
निर्झरिणी सी झर झर झरती,
ज्यों कविवर की कविता।
कोमल किसलय कुमकुम जैसी,
कनक कामिनी वनिता।
कोकिल कंठी कमल आननी,
ज्यों प्रभात की सविता।
मृगनयनी वह मधुर भाषिणी,
पुष्पगुच्छ की लतिका।
कुंचित केश राशि सिर शोभित,
ज्यों कृष्ण नाग की मनिका