पवन बसन्ती 

01-03-2021

पवन बसन्ती 

सुषमा दीक्षित शुक्ला  (अंक: 176, मार्च प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

ये पवन बसन्ती मतवाला,
फागुन आया पीत बसन 
 
राग रंग कुछ मुझे न भाता,
जब से मथुरा गया किशन।
 
सपना सा हो गया सभी कुछ,
हुई कहानी सी बातें।
 
रह रह उठती हूक हृदय में,
कौन सुने मन की बातें।
 
सोच रही थी अपने मन में,
किशन कन्हैया मेरा है।
 
नहीं जानती थी गोकुल में,
पंछी रैन बसेरा है।
 
सोची बात नहीं होती है,
होनी ही होकर होती।
 
हँसकर जीना चाह रही थी
लेकिन है आँखें रोती।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
किशोर साहित्य कविता
स्मृति लेख
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में