कविता

मंजु आनंद (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मन की पीड़ा जब ढलती है शब्दों में, 
और शब्द उतरते हैं कागज़ पर,
तब बन जाती है कविता।
 
नम आँखे जब लगती हैं भिगोने काग़ज़,
और काग़ज़ भीग जाता है, 
तब बन जाती है कविता।
 
शब्द जब बहने लगते हैं,
क़लम फिर भी रुकती नहीं,
तब बन जाती है कविता।
 
लिखता है कवि जब मन के भावों को, 
क़लम की स्याही से,
तब बन जाती है कविता।

2 टिप्पणियाँ

  • 28 Jul, 2021 11:02 PM

    जी सच कहा ।भावों का आवेग ही कविता है । अनुभूति से ही सृजन में जीवंतता आती है । संवेग ही काव्य बन जाता है । बहुत सुंदर । बधाई

  • बहुत बढ़िया

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