धुएँ की लकीर

10-04-2014

धुएँ की लकीर

वीणा विज ’उदित’

दोपहर से उसका पार्थिव शरीर कमरे के बीचों-बीच कालीन पर पड़ा है। घर में कोई भी नहीं है। उसकी आत्मा अभी वहीं मँडरा रही है। मानो शरीर पर से कपड़े उतारने की तरह उसने शरीर को छोड़ा हो। उसे कोई नहीं देख पाएगा, लेकिन वह देखेगा सब के रंग-ढंग। कहते हैं न कि शरीर को त्यागने के बाद आत्मा वहीं मँडराती रहती है एक-दो दिन तक। अब वह केवल दृष्टेता है, सब की सच्चाई को परखेगा।

साँझ ढले दरवाज़े में बाहर से चाबी घुमाने और बातें करने की मिली-जुली आवाज़ें आईं। वह समझ गया कैली आँफीस से रॉबिन को साथ लेकर आई है। एक ही कंपनी में काम करने से दोनों में गहरी छनती थी। जब तक हक़ीकत से दो-चार नहीं हुआ था, अबीर उन दोनों के संबंध को सदा संदेह से ही देखता रहा था। कुछ साल पहले की बात है, इंडिया से भाभी आई हुई थीं। एक दिन कैली ऑफिस जाते हुए बोली कि ‘धरा’ ने कुछ सामान मँगवाया है, शाम को रॉबिन के घर ‘धरा’ का बैग देने जाना है, रॉबिन सैनफ्रान्सिसको जा रहा है, उसे होस्टल में पहुँचा देगा। अबीर ने सामान बैग में डालकर अपनी कार की डिकी में रख लिया और भाभी को भी बोला कि वे तैयार हो जाएँ, इसी बहाने थोड़ा घूमना हो जाएगा। शाम को जब कैली आई तो बैग का पूछकर, उसने बैग अबीर की कार से निकालकर अपनी कार में रखा। इसपर अबीर ने कहा कि हम भी चल रहे हैं, भाभी को थोड़ा घुमा लाएँगे। इसी कार में चलते हैं न! तो अपनी कार में बैठते हुए बोली क्या करेंगे आप सब वहाँ जाकर? भाभी को फिर घुमा देंगे। और कार घुमा कर ये गई कि वो गई। वे दोनों एक-दूसरे का मुँह ताकते रह गए थे। तभी अपमान का कड़ुआ घूँट पीता अबीर गुस्से से चीखा था, "हरामज़ादी! यार के घर जा रही है। हमें कैसे साथ ले जाती? हमें उसका ऐड्रेस मालूम हो जाता।" भाभी तो कमाऊ पत्नी का रुआब समझ रहीं थीं। पर अबीर की बात सुनकर तो उनका मन कैलाश उर्फ़ कैली के लिए कड़ुआहट से भर उठा। (अमेरिका में नाम को छोटा करके बुलाने का भी चलन है) फिर तो वो जब तक रहीं, उनका स्वाद कसैला ही बना रहा। लेकिन आज अबीर को लग रहा है कि कितना ग़लत था वो....!

ख़ैर, भीतर आते ही अबीर को ज़मीन पर गिरे देखकर दोनों चौंक गए। कैली चीखी, ऐबी! उसने मुँह के करीब हो देखा कि साँस नहीं आ रही थी। वो जैसे ही अबीर को पकड़कर झिंझोड़ने लगी थी कि रॉबिन ने उसे एकदम पकड़ लिया और बोला कि पहले "नाइन-वन-वन" को सूचित करो। (अमेरिका में आपातकालीन सेवा के लिए सरकारी गाड़ी का नम्बर) फिर बच्चों और दोस्तों, रिश्तेदारों को फोन करो। पर कैली वहीं घुटनों के बल बैठकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। अप्रत्याशित घटा देखकर वो भयभीत हो गई थी। रॉबिन ने उसे बेटे ‘शान’ का फोन न. मिलाकर दिया तो वो काँपती आवाज़ में बोली, "शान! जल्दी आजा बेटे! तुम्हारे डैड नहीं रहे।" शान ‘सैनडिएगो’ में पढ़ता था, वो उसी वक़्त वहाँ से चल पड़ा। धरा भी हवाई जहाज़ से चल पड़ी थी। इस बीच स्थानीय दोस्तों को भी सूचित कर दिया। तभी सायरन बजाती नाइन-वन-वन की गाड़ी आ गई सबसे पहले। नीली यूनिफार्म में कोई चार-पाँच लोगों का मैडिकल स्टाफ धड़-धड़ करता पहुँच गया। अपने-अपने अपरेटस ले कर वे मेन गेट की तरफ फुर्ती से लपके। किन्तु कैली ने उन्हें वहीं रोक दिया। टूटने की कगार पर खड़े उनके रिश्ते जैसी हालत में वो बेटे के पहुँचने तक अबीर के मृत-शरीर को बिना छेड़े, उसी तरह पड़े रहने देना चाहती थी। लेकिन अबीर की आत्मा जानती थी सच्चाई। वह वहीं खड़ा मुस्कुरा कर सोच रहा था कोने में कि कितनी घाघ है यह औरत! बहुत सफाई से बचा गई है अपना दामन कि कहीं बच्चे उस पर शक न करें।

तभी आंटी ने आकर कैली को रोते हुए गले लगा लिया। सब मगरमच्छ के आँसू हैं, अबीर समझ रहा है। अभी शाम थी, लोगबाग घर पहुँचकर सपर (शाम का खाना) कर रहे थे। ख़बर मिलती गई और लोग कैली के पास पहुँचते गए। मिसेस रेड्डी ने तो आते ही ज़ोर-ज़ोर से रोना शुरू कर दिया। "हाय-हाय क्या हो गया अबीर को, भला-चंगा था, अभी उमर ही क्या थी?” सबको आते देख सुधा और नीला ने अल्मारी से चादरें निकालकर बिछानी शुरू कर दीं व लाँबी के सोफे पीछे कर दिए। भारतीय माहौल बनाया जा रहा था। (अमेरिका में जब दिल करे भारतवासी अमेरिकन बन जाते हैं, और जब चाहे भारतीय बन जाते हैं। सब मौके पर निर्भर करता है)।

असल में अबीर और कैली के रिश्ते में कुछ सालों से दरार पड़ चुकी थी - जो बच्चों से छिपी नहीं थी। वे कई बार तलाक लेने की बात करते लेकिन बच्चों की शादी तक गाड़ी किसी तरह खींचनी ही पड़ेगी, इतना विचार कर रुके हुए थे। बच्चे जब भी छुट्टियों में घर आते इन दोनों की बहस से तंग आकर घर से बाहर दोस्तों के साथ समय बिताते और फिर चले जाते थे। अबीर ए.एम.सी. (अमेरिकन मूवी चैनल) पर मूवी देखने का शौकीन था। ऐसे में कैली आ जाती और बुरा सा मुँह बनाकर "ऊँह!" के साथ कोई न कोई तिरस्कार भरे वाक्य बोल जाती। अबीर अपने कान के पर्दों के फाटक आपस में खुले रखता -जिससे वो वाक्य एक कान से दूसरे कान में होते हुए बाहर निकल जाते। अलबत्ता, क्रोध से उसकी टाँगे कुछ देर ज़ोर-ज़ोर से हिलतीं पर विवश हो शनैः शनैः रुक जातीं। आख़िर आफिस से घर आने पर उसके पास टी.वी. के अलावा होता भी क्या था वक़्त बिताने को?

तभी आत्मा ने देखा कि कैली ने भीतर जाकर सल्वार-कमीज़-चुन्नी पहनी। शायद पाश्चात्य परिधान में रोने का प्रभाव ठीक नहीं रहना था। "हाय कैली! ये क्या हो गया तेरे साथ? कहती लाली ने आते ही कैली को ऐसे अपनी बाँहों में समेट लिया कि कैली उसके कंधे पर सिर रखकर सुबकने लग गई। उसके सारे दोस्त बैठे उसी की बातें कर रहे थे कि इन दिनों अबीर चुप-चुप हो गया था। (सब सुन अबीर की आत्मा कोने में ठहरी हुई मुस्कुरा रही थी) रात घिर आई थी। इंडिया भी ख़बर कर दी गई थी। टन-न टन-टन बीच-बीच में टेलिफोन की घंटियाँ बज रही थीं। ९-१-१ के स्टॉफ ने लाश के पास किसी को नहीं जाने दिया। दवाई की अल्मारी के सामने नीचे ढेरों दवाई की गोलियाँ बिखरी पड़ी थीं। एक दवाई की शीशी भी लुढ़की पड़ी थी, जिसे नोटिस करते हुए उमाजी ने साथ बैठी लेडिस से कहा, "लगता है अबीर को घबराहट हुई होगी तो ‘ट्म्स’ खाने लगा होगा, और कुछ खा नहीं सका बेचारा!" तभी सब से उम्र में बड़ी इन्द्रा आँटी तरस खाती बोलीं, "अरे कोई कैली को पानी तो पिलाओ। रो-रो कर इसका गला सूख रहा होगा।" एक कोने में दरवाज़े से सटी आधी भीतर - आधी बाहर मुँह में चुन्नी का कोना दबाए खड़ी थी ‘मीरू’ - कैली की जान, उसकी अपनी। जो कैली को रोता देख कर आँसू नहीं रोक पा रही थी। उसका अबीर की मौत से कोई लेना-देना नहीं था। इस बात को अबीर के अलावा कोई नहीं जानता था।

असल में कैली और मीरू की बहुत ग़हरी दोस्ती थी। मीरू नाज़ुक सी, छोटे कद की, बेहद सीधी दिखती थी। उसका पति काम के सिलसिले में कभी-कभी महीनों बाहर गया रहता था। एकदम अकेली होने से, पीछे सुख-दुख में उसे कैली का ही सहारा रहता था। अबीर इस बात को समझता था। क्योंकि उस की बेटी भी दूर न्यूयार्क में पढ़ती थी। मीरू के पास बेशुमार दौलत थी। आए दिन एक से एक बेनायाब विदेशी सामान से उसका घर सजता था। धरा के फ्लैट के लिए उसी का फर्नीचर भेजा था कैली ने। सारा का सारा सामान सैकण्ड हैंड किन्तु विशेष आधुनिक था। धरा बेहद ख़ुश थी। कैली अधिकतर आफिस से घर आ कर साँझ ढले मीरू के घर चली जाती थी, फिर न जाने कब वापिस आती थी। (वहाँ सब के पास घर के मेन दरवाज़े की अपनी-अपनी चाबी होती है) किसी-किसी शनिवार को जब बच्चों का प्रोग्राम नहीं होता घर आने का, तो ये वहाँ रात भी रह जाती थी। अबीर को इन सब बातों की आदत सी हो गई थी। वह एकान्त में ही अपने को सहेज लेता था।

शान आ पहुँचा था। बाहर खड़े सारे मर्द उसके साथ-साथ भीतर आए। ’नाइन-वन-वन’ का स्टाफ कार्यशील हो उठा। उन्होंने लाश का मुआइना शुरू करने के लिए शान के दस्तख़त करवाए, और सब कुछ टैस्ट कर के बताया कि मानसिक-तनाव बहुत अधिक बढ़ जाने से हार्ट-फेल हुआ है। इसके पश्चात वे बाहर निकल गए क्योंकि ‘धरा’ रोती-बिलखती आ कर अपने डैड की बॉडी से लिपट गई थी। "डैड आई नीड यू, वेअर आर यू डैड? गैट अप -गैट अप।" और अबीर को झिंझोड़ने लग गई। वहाँ जितने लोग थे सब की आँखें नम हो गईं। (अपनी लाडली को बिलखता देख कर अबीर की आत्मा भी बिलख उठी, किन्तु किसी को क्या पता)। शान भी बहन के साथ हिचकियाँ लेकर रो रहा था। कैली ने रोते हुए धरा को सँभालना चाहा तो माँ को तिरस्कृत नज़रों से देखते हुए धरा ने उसका हाथ परे झटक दिया। (यहाँ अबीर की आत्मा को बेहद शान्ति मिली) रोते-रोते धरा भीतर जाकर कमरे में बने छोटे से घरेलू मंदिर के समक्ष बैठकर सुबकने लगी। नीतू, शोभा और लाली आँटी उसके पीछे-पीछे भीतर आईं, पर कुछ कह नहीं पा रही थीं। बेटी का पिता के लिए ऐसे रोना स्वभाविक था - वो कहतीं भी तो क्या? लाली ने उसे कंधे से पकड़ा व उसकी पीठ पर धीरे-धीरे हाथ फेरती रही। ऐसे में शब्दों से अधिक ‘स्पर्श’ और चेहरे के भाव असल सान्त्वना देते हैं।

डैड की जगह शान आज घर का मर्द बन गया था। डॉ. दिनकर, अभय व गिरीश अंकल ने उसे सँभाला, और नाइन-वन-वन को उनकी अगली कार्यवाही करने दी। वे अबीर की लाश को ‘मार्चुरी’ (मुर्दाघर) में रखने के लिए ले जा रहे थे। आज वीरवार था, लेकिन संस्कार शनिवार को १२ बजे होगा (क्योंकि शनिवार को सब की छुट्टी होती है,सब आसानी से पहुँच सकते हैं) वहीं इकट्ठे होंगे - उन्होंने बताया। अबीर के नए कपड़े उसे तैयार करने के लिए भिजवा दें। (वहाँ मृत व्यक्ति को पूरे मेक-अप से तैयार करते हैं, जिससे उसकी आखरी छवि सब के स्मृति पटल पर सुंदर बनी रहे) साथ ही बता दें कि ताबूत किस लकड़ी का बनवाना है। (जो जितना पैसा खर्च करना चाहता है उसके अनुसार ही चंदन, रोज़वुड, देवदार या चीड़ की लकड़ी का बनवाता है, उसी में मृत शरीर को रख कर बिजली की भट्टी में जलाते हैं।) उसके पश्चात बताया कि इतवार को चौथा कर उठाला करेंगे।

अबीर का मृत शरीर तो जा चुका था लेकिन उस की आत्मा उन सब के बीच ही घूम रही थी। कैली सब के बीच में मुँह ढाँपे बैठी थी, मानो उसका सब कुछ उजड़ गया हो। उजड़ा तो अबीर था, जो अपने घर की इज़्ज़त बचाने की ख़ातिर किसी को कुछ नहीं बताना चाहता था, और मानसिक तनाव को अकेले झेलता जहान से चलता कर गया था। हुआ यूँ कि एक रात अचानक धरा आ पहुँची, जबकि इस सप्ताहान्त पर उसने नहीं आना था। और कैली मीरू के घर दो दिनों के लिए रहने चली गई थी। अबीर ने सोचा कैली को बुला लिया जाए; इसलिए उसने कैली को तीन बार फोन मिलाया। उसने उठाया नहीं। मीरू ने भी नहीं उठाया। इस पर अबीर के मन में संदेह उठा कि हो न हो कुछ गड़बड़ है। उसने कार निकाली और स्वयं ही वहाँ के लिए निकल पड़ा। मीरू के घर के कुछ पहले ही उसने कार पार्क की, और पैदल ही उसके बैडरूम की खिड़की की ओर मुड़ गया। उसे शक था कि ज़रूर रॉबिन वहाँ आया होगा। रात अपने यौवन पर थी, अर्थात बैडरूम में ही जवानी का खिलवाड़ हो रहा होगा – यह सोच उसने करीब से देखा। हल्की-हल्की रोशनी पर्दों से छनकर बाहर आ रही थी। उसने कान को खिड़की से सटा दिया। उसने दो औरतों की आवाजें सुनी - साथ ही सुनी उनकी बातें। अप्रत्याशित वार्तालाप! अविश्वसनीय!! जब अपने कानों पर भरोसा न हुआ तो उसने भीतर झाँकने का भरसक यत्न किया। कुछ देख पाने पर उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। वह बेहद घबरा गया। अपनी पत्नी और ऐसी —? वह तो क्या, कोई भी ख़्वाब में भी इस घिनौनी हरकत के विषय में नहीं सोच सकता था। उसे उबकाई आ रही थी। वह वापिस जाकर कार में आँखें बंद करके बैठ गया। उसे लगा वो गधा है, उल्लू है, बेवकूफ है। न मालूम ये सब कुछ कितने समय से चल रहा था!!! उसे याद आने लगा—-
कैली का बराबरी का लड़ना कि वह भय खा जाता था। मीरू के पति का कई-कई दिनों तक न होना और इस पर कैली का उसे पुचकारना व प्यार भरी नज़रों से देखना। कैली का आधी रात के बाद घर के दरवाज़े में चाबी घुमाना। चुपके से आकर सो जाना। वह जब कभी कैली के पास गया, उसने दुत्कार दिया था। धरा के जन्म के बाद से वो अबीर से धीरे-धीरे दूर होती चली गई थी। कैली की बेरुख़ी, उस पर ताने कसना, साथ ही मर्दों जैसा रुआब झाड़ना, उसके हाथों की उँगलियों का गुस्से में ज़्यादा लम्बा लगना, हाथ में पकड़ा हुआ कोक का कैन ही फेंक देना आदि ढेरों बातें। उससे सह्य नहीं हो रहा था कैली का यह रूप! स्वयं की पत्नी को परपुरुष के साथ देखना तो प्रकृति के अनुकूल है किन्तु कल्पना से भी परे परस्त्री संग अप्राकृतिक क्रिड़ाओं में लिप्त देखना–और उसने खिड़की का काँच नीचे खिसका कर वहीं बाहर उल्टी कर थी। फिर कार स्टार्ट कर घर वापिस आ गया। धरा तो कब की सो चुकी थी, वह भी जाकर लेट गया। सालों से उसका बैडरूम किसी ने नहीं बाँटा था। वहाँ व्याप्त था विकराल अकेलापन! इस एकान्त में शारीरिक भूख की गंदी सच्चाई ने उसे हिला दिया था। उसके सीने में हल्का-हल्का दर्द उठ रहा था - उसे अपनी पहले वाली कैली याद आ रही थी। जो केवल उसकी थी। एक बार खाने की टेबल पर खाना खाते समय किसी बात पर अबीर ने अपना हाथ कैली की जांघ पर रखा तो उसने उसी पल झटके से उसका हाथ परे कर दिया। यह तिरस्कार अबीर को भीतर तक घायल कर गया था। वह नामर्द नहीं था, पत्नी के रहते भी कुछ लोग अन्य स्त्रियों से सम्बंध रखते हैं। लेकिन उसमें संयम था। हाँ, जब कभी मूड खराब होता तो वह व्हिस्की के दो पैग ले कर सो जाता था। रात के सन्नाटे में दीवार की घड़ी की टिक-टिक से उसकी दिमाग की नसें फटने को थीं। उस की नस-नस में एक खालीपन पसर रहा था। कि उसे बाहर के दरवाज़े में चाबी की आवाज़ लगी। शायद कैली ने फोन का मैसेज सुन लिया था धरा के आने का - तभी आ गई थी। उसका दिल किया कि जाकर उसे खूब पीटे, लेकिन वह अमेरिका में था - इंडिया में नहीं। धरा भी थी घर में, सो अभी चुप्पी भली थी।

दो दिन रह कर धरा होस्टल वापिस चली गई। इस बीच अबीर मुँह ढाँपे कमरे में ही पड़ा रहा। वह हाँ-हूँ के अलावा कुछ भी बात नहीं कर रहा था। कैली के ऑफिस से लौटने पर उसने उसे आवाज़ देकर अपने कमरे में बुलाया। वो आकर उसके सिरहाने खड़ी हो गई। अबीर ने एकदम से सीधा प्रहार किया। बोला, "मीरू के साथ तुम्हारा संबंध अनैतिक और घृणास्पद है - मैं सब जान गया हूँ। तुम मुझे दुत्कारती रही, पर मैंने कभी पराई स्त्री से संबंध नहीं बनाए, मैं तुम्हे ही प्यार करता रहा। धोखेबाज़! यू चीटर! दिल करता है तुम्हारा गला घोंट दूँ -स्साली! खुद सालों से ऐश कर रही है।"

कैली के काटो तो खून नहीं। जैसे चोरी पकड़े जाने पर चोर उल्टे वार करता है, वो भी छूटते ही चिल्लाई, "बकवास मत करो। अपने अकेलेपन से तंग आकर नया काम कर रहे हो - मुझ पर बेबुनियाद लाँछन लगाकर, होश में तो हो तुम?" और पैर पटकते हुए वहाँ से जाने लगी तो अबीर ने उसकी कलाई पकड़ ली। खींचकर उसे पास बैठा लिया और बोला, "तुम्हें प्रूफ़ चाहिए तो लो सुनो”— और उसने सारा किस्सा उसे सुना दिया। अपने ही मुँह पर अपनी करनी का कच्चा चिट्ठा सुन कर वो भीतर तक काँप उठी। लेकिन उसका हाथ झटक कर खड़ी हो पागलों की तरह ज़ोर-ज़ोर से अट्टहास कर उठी। जिस पर अबीर ने घृणा से उसके मुँह पर ज़ोर से थूक दिया। (अमेरिका में आप पत्नी पर हाथ नहीं उठा सकते, सज़ा हो सकती है।) सोचने लगा कि वो भारत में होता तो इसे बताता।

थूक को ज़ोर से हाथ से पोंछते हुए वो चीखी कि ये सब मीरू के अकेलेपन में रोने-बिलखने से उससे हमदर्दी में प्यार करते समय कब सब बदल गया, उसे मालूम ही नहीं हो सका। अब तो सालों बीत गए है। उसने तो मीरू को जीवन दान दिया है। हँसी-खुशी दी है। यह दो दिल, दो बदन मिलने का संबंध है, फिर वो किसी के भी हों। वे दोषी नहीं है। उसे कोई शर्मिंदगी नहीं है। यह कहते हुए उसने अबीर की ग़िरेबान में हाथ डालना चाहा लेकिन अबीर अपना गिरेबान छुड़ाकर घर से बाहर निकल गया। कार में बैठते ही उसने आँखें बंद कीं और दोनों हाथों से अपने बाल नोच लिए। वो क्या करे, क्या न करे; उसे कुछ सूझ नहीं रहा था। उसने कार घुमाई और अपने दोस्त डॉ. दिनकर के घर चल पड़ा। पहले भी वे कई बार साथ बैठा करते थे। औपचारिक बातों के पश्चात उसने जो भी पूछा और जो कुछ समझा - वह हैरान कर देने वाला था। उसने पूछा, "यार! एक बात बता- क्या साधारण स्त्री जो दो बच्चों की माँ बन चुकी हो, क्या कभी वो समलैंगिक में बदल सकती है? पति के होते हुए भी उससे संबंध न रख कर; क्या पर-स्त्री से संबंध बना सकती है?"

"तू यह सब क्यों पूछ रहा है?"

"बस, यूँ ही कुछ पढ़ रहा था। अपना संशय मिटाना चाहता हूँ।"

डॉ. बोला– "ये शरीर के कैमिकल इमबैलेन्स का खेल है। जैसे कि औरत या मर्द में एस्ट्रोजन की कमी या बहुतायत होने से हार्मोन का इमबैलेन्स हो जाना है। एक यह कारण है। कई लोग इसका होना, औरत की डलिवरी के बाद कुछ हद तक मानते हैं। दूसरे, हारमोनल इमबैलेन्स मानते हैं। कई बार तो वे समलैंगिक भी हो जाते हैं और भिन्नलैंगिक भी साथ-साथ बने रहते हैं। लेकिन अधिकतर ये समलैंगिक ही बने रहते हैं। अपने प्राकृतिक स्वभाव व शारीरिक बनावट के अनुसार वे स्वयं एक-दूसरे में ही संतुष्टि पा लेते हैं। मनुष्य मात्र का इस पर वश नहीं रह पाता है। हमारा भारतीय समाज इसे मान्यता नहीं दे सका। लेकिन पश्चिम में यह मान्य है।"

सब बातें सुनकर अबीर समझ तो गया किन्तु दिल मान नहीं रहा था। उसने उनके साथ ही डिनर किया और घर वापिस आ सोने का उपक्रम करने लगा। जहाँ तक वो जानता था बिन ब्याही सहेलियाँ ‘लैस्बियन’ व बिन ब्याहे दो पुरुष जो आपस में यौन-संबंध रखते हैं- ‘गे’ होते हैं। न्यूज़ में ऐसी चर्चा होती ही रहती है, खासकर आजकल। लेकिन पहले साधारण रहकर बच्चे पैदा करना फिर असाधारण होकर समलैंगिक बन जाना — ये हज़म न होने वाली बात थी। हमारे समाज में इसे स्वीकारना बेहद कठिन व दुश्कर है। हमारे भीतर इस विषय में जानते ही घृणा की लहर व्याप्त जाती है। फिर कैसे–? कैसे वह स्वीकार कर ले? उसके बच्चे शरम व ग्लानि से कुछ भी वाहियात कदम उठा सकते हैं। वह अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को क्या बताएगा कि उसकी पत्नी—–!!!

वह एकान्त में चीख उठा, नहीं-नहीं। इस अनैतिक संबंध के पर्दाफ़ाश की शर्मिंदगी वो अपने आपमें सह नहीं पा रहा था। सारी रात सो न पाने के कारण वो सुबह ऑफिस नहीं जा सका था। घर की चुप्पी में उसे अपने सिर की नसें फटती लग रही थीं। सीने में भी रह-रह कर दर्द उठ रहा था। वह डगमगाता हुआ मैडिसन की अल्मारी तक पहुँचा और ‘टैलीनौल’ निकालने लगा, तो दवाइयों की शीशी व दवाइयाँ सब हाथ से छूट कर वहीं नीचे बिखर गए। साथ ही न मालूम दिल की धड़कन रुक गई कि दिमाग की नसें फट गईं। वह वहीं ज़मीन पर कालीन पर गिर गया और उसका दर्द सदा के लिए चैन पा गया। कमरे के कोने में उपस्थित वह सोच रहा है कि वह तो अपने को जलाकर पीछे ‘धुएँ की लकीर’ छोड़ चला है, जो हौले-हौले व्योम मे फैलकर अपना अस्तित्व खो देगी और परिवार पर कोई निशां नहीं छोड़ेगी।

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