बेचारे विप्र भंगड़ी लाल

01-04-2021

बेचारे विप्र भंगड़ी लाल

सुषमा दीक्षित शुक्ला  (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

बात उन दिनों की है जब मैं अपनी वकालत द्वितीय वर्ष की परीक्षा, लखनऊ विश्वविद्यालय में समाप्त हो जाने पर, अवकाश के समय होस्टल से अपने गाँव कफारा लखीमपुर खीरी गयी हुई थी। तभी यह दिलचस्प वाक़या हमारे गाँव में घटित हुआ। उन दिनों हमारे गाँव में वैशाखी का बहुत विशाल प्रसिद्ध मेला लगा हुआ था। तभी मेले के कारण, एक पंडित जी सुअवसर देखकर हमारे गाँव में प्रति वर्ष की भाँति बैसाखी मेले के समय पुनः पधारे। वह भाँग खाने के बहुत शौक़ीन थे इसलिए लोग उन्हें प्यार से विप्र भंगड़ी लाल कह कर पुकारते थे। 

उस समय गाँव में शिव मंदिर के समीप ही मेला लगा हुआ था। लोग दूर-दूर से वहाँ भोलेनाथ पर सत्तू चढ़ाने आया करते थे। भोलेनाथ का चढ़ा हुआ सत्तू का कुछ भाग पुजारी लोग विप्र भंगड़ी लाल को भी दे देते थे, क्योंकि विप्र जी शाम को बहुत सुंदर-सुंदर लतीफ़े सुना-सुना कर वहाँ के लोगों का मनोरंजन किया करते थे। 

इस बार बैसाखी में सत्तू बहुत चढ़ा था। तो भंगड़ी लाल जी को भी सत्तू बहुत मात्रा में प्राप्त हो गया। उन्होंने मारे ख़ुशी के इस बार और ज़्यादा भाँग पी ली और सो गए। उनके बग़ल ही में सत्तू की मटकी भरी रखी थी और कुत्तों से बचाने के लिए उन्होंने एक डंडा रख रखा था। 

सोते में विप्र बंगड़ी लाल जी ने सपना देखा कि वह सत्तू बेचकर बकरी लाए हैं और उन बकरियों को बेचकर मुनाफ़े से फिर गाय, भैंस ख़रीदी हैं, फिर इसी मुनाफ़े के क्रम में उन्होंन काफ़ी खेत ख़रीदे, घर बनवाये और काफ़ी तरक़्की की है। आलीशान घर और ख़ूबसूरत घरवाली भी सपने में ही हासिल हो गयी, साथ ही काफ़ी ज़मीन-जायदद भी बना ली। सपने में ही सुंदर घुँघराले बालों वाला बेटा भी खेलने लगा, जो खिलौनों के खो जाने से मचल कर रोता है। लेकिन भंगड़ी लाल की काल्पनिक स्वप्निल सुंदरी पत्नी उसके खिलौनों को नहीं ढूँढ़ती, बस अपने सिंगार में लगी है। भंगड़ी लाल को पत्नी पर बहुत ग़ुस्सा आया और वह सपने में ही अपनी पत्नी को पास रखा डंडा उठाकर जो मारते हैं . . . तो वह डंडा वास्तव में कुत्तों से बचाने वाला डंडा सत्तू की मटकी पर पटक देते हैं . . . मटकी फूट गयी और सारा सत्तू मिट्टी में बिखर गया। जिस सत्तू के मुनाफ़े से उन्होंने सुंदर सजीला सपना देख डाला था वह भी उसके टूटने की आवाज़ से टूट कर चूर-चूर हो गया . . .। 

फिर क्या बेचारे भंगड़ी लाल चिल्लाते हैं, "हाय मेरा सत्तू, हाय मेरी बीवी, हाय मेरा बेटा, हाय मेरा आलीशन घर, हाय मेरी बकरी हाय मेरी गाय . . . अब सब कहाँ से पाऊँगा!"

बेचारे भगड़ी लाल ने ये सारा वाक़या मेरे घर आकर सुनाया। कह रहे थे कि काश इतना भाँग ख़ुशी से पगला ना पिए होते। 

हम सबका हँस-हँस कर बुरा हाल था, बेचारे विप्र भंगड़ी लाल! 
 

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