व्यथा का शृंगार 

01-03-2024

व्यथा का शृंगार 

अनिमा दास (अंक: 248, मार्च प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

(सॉनेट) 

 

श्याम-वर्ण सी व्यथा . . . श्वेत वर्ण से स्वप्न
इस दूरत्व में हुए हरित . . . शोण से क्षरित
कस्तूरी सी इच्छा स्पंदित . . . सदैव गंधित
किन्तु मौन . . .नहीं है इसके कंठ में निस्वन। 
 
इस युग में भी एकपर्णी मैं . . . द्विपर्णी कथा
स्त्री-पुरुष की सभ्यता में बनी हूँ . . . संदेह
मैं कहूँ-सभी नीरव . . . अभिशाप सा स्नेह
मेरी प्रत्येक स्थिति है . . . व्यथा केवल व्यथा। 
 
सुप्त शुक्ति में ऊषा-शुभ्रा . . . मुक्ति-कामना
में रत . . . देव-वेदी पर दीप्त है एक दीपक 
कि स्वतः आ जाए कृष्ण हँस पर . . . चंद्रक 
तम के तप में न लुप्त हो जाए . . . प्रार्थना। 
 
सम्मिलित स्वर में उठे हैं जलधि में ज्वार
कि उद्वेलित व्यथाएँ करने लगी हैं शृंगार। 

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