व्यथा का शृंगार
अनिमा दास
(सॉनेट)
श्याम-वर्ण सी व्यथा . . . श्वेत वर्ण से स्वप्न
इस दूरत्व में हुए हरित . . . शोण से क्षरित
कस्तूरी सी इच्छा स्पंदित . . . सदैव गंधित
किन्तु मौन . . .नहीं है इसके कंठ में निस्वन।
इस युग में भी एकपर्णी मैं . . . द्विपर्णी कथा
स्त्री-पुरुष की सभ्यता में बनी हूँ . . . संदेह
मैं कहूँ-सभी नीरव . . . अभिशाप सा स्नेह
मेरी प्रत्येक स्थिति है . . . व्यथा केवल व्यथा।
सुप्त शुक्ति में ऊषा-शुभ्रा . . . मुक्ति-कामना
में रत . . . देव-वेदी पर दीप्त है एक दीपक
कि स्वतः आ जाए कृष्ण हँस पर . . . चंद्रक
तम के तप में न लुप्त हो जाए . . . प्रार्थना।
सम्मिलित स्वर में उठे हैं जलधि में ज्वार
कि उद्वेलित व्यथाएँ करने लगी हैं शृंगार।
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