मोहनीय प्रेम
अनिमा दास
इस नील नीरव निदाघ में
कैसे आई वर्षा की महक
छम-छम करती बूँदें
कैसे आई माघ में॥
कहीं तरंगिणी की मंदिमा
कहीं शैल का मौन चंद्रमा
निःशब्द मेरी प्रतिछवि से
करते अहरह कथोपकथन
लिए अंजुरी में पुष्प-लताएँ
कि देह बनती वंशी . . .
स्पर्श करती अधरों की लालिमा से॥
कैसे आई वर्षा की महक
नीरव निदाघ में
माघ में . . .।
नवयौवन से पुलकित भ्रमर
सुनता परागों की अभिलाषा
कहता पवन से . . उड़ा ले जाए
कहीं दूर . . उनकी अंतर्भाषा
अग्नि वन-वन . . किन्तु प्रेम में
भ्रमर बनता मोहना बाग़ में
कैसे आई वर्षा की महक
नीरव निदाघ में
माघ में . . .
इस नील नीरव निदाघ से
कह दूँ . . माघ से
वसंत का हुआ अवतरण है
स्वप्न रंग-बिरंगे नयनों में
लिए रात्रि वियोग की ज्वाला में
न करेगी व्यतीत अब
मोहन की प्रतीक्षा में . . .
कह दूँ . . . निदाघ से . . .
माघ से . . .।
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