पीड़ा पर्व (सॉनेट 23)
अनिमा दास
क्या कह दिया तुमने कि . . . पर्ण लगे शुष्क होने
रक्तिम अंबर से सहसा . . . झरने लगे रुधिर बिंदु
नीड़ हुआ शून्य . . . तिमिर से धूम्रकण लगे उड़ने
तप्त हुई मंदाकिनी, तरलहिम से पूर्ण हुआ सिंधु।
क्यों कहा? क्या अंबुद में थीं अतीत की उल्काएँ?
क्या आत्मन्वेषण से . . . हुए तुम अकस्मात् रुक्ष?
क्यों कहा? क्या पद्म पुष्कर में लुप्त हुईं कामनाएँ?
क्या वसंत के आगमन से पुष्प-शून्य हुआ था वृक्ष?
क्या भग्न कोणार्क के प्रश्नों से क्षताक्त हुआ था क्षर?
क्या अश्विन की सुगंध में . . . शिशिर हुआ था उष्ण?
क्या कह दिया तुमने कि नक्षत्र हुए स्तब्ध निरुत्तर?
क्या अध्वर के अधर पर सिक्त भाव भी हुए तृष्ण?
तुम इन प्रश्नों में रहो मौन, ये प्रश्न हैं समुद्र-मग्न शुक्ति
क्योंकि तुम्हारी इच्छा ही है मेरी प्रथी से परिमुक्ति।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- उक्त-अनुक्त
- कलंक भी है सौंदर्य
- कलंक भी है सौंदर्य
- क्षण भर वसंत
- नर्तकी
- नारी मैं: तू नारायणी
- पद्म प्रतिमा
- पीड़ा पर्व (सॉनेट 23)
- प्रश्न
- प्रेम पर्व (सॉनेट-26)
- प्रेम पर्व (सॉनेट-30)
- प्रेम पर्व (सॉनेट-38)
- मनोकामना
- मुक्ति (सॉनेट)
- मृत्यु कलिका
- मृत्यु कलिका (सॉनेट-23)
- मृत्यु कलिका – 01
- मृत्यु कलिका-सॉनेट 1
- मृत्यु कलिका-सॉनेट 2
- मेघ मल्हार
- मोहनीय प्रेम
- वर्षा
- व्यथा का शृंगार
- व्यथित भारती
- व्याकरण
- स्त्री का स्वर
- स्वतंत्रता
- स्वप्नकुमारी
- हंसदेह
- ऐतिहासिक
- पुस्तक समीक्षा
- विडियो
-
- ऑडियो
-