मृत्यु कलिका – 01
अनिमा दास
(सॉनेट-28)
नहीं करती शोक अभिव्यक्त कभी
रहते मौन मन के जितने क्षत सभी
देता है आमत्रंण यह अंतिम समय
आओ! शीघ्र करो देह का विलय।
नभ है निर्मेघ . . आज पथ है प्रथित
शिशिर शीकर से विग्रह है प्लावित
क्रंदन नहीं ये . . . हैं मोहमुक्त श्लोक
ऐ मधुक्षरा! त्याग रही हूँ . . . भूलोक।
त्याग रही . . यंत्रणाओं का कारागृह
स्वर्णिम मृग से आत्मा हुई निस्पृह
छाई है मंदिमा अब मेरी काया पर
एकत्रित हो रहें अश्रुजल लिए कर।
ऐ मृत्यु कलिका! शेष है इच्छा एक
ऋणमुक्त कर मुझे, दे पुष्प अनेक।
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