नर्तकी

अनिमा दास (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

(सॉनेट) 
 
मदिर नयनों में है अव्यक्त भाषा . . . अपरिगत अभिलाषा 
भंगिमाओं में उभरती तृष्णा . . . क्या है तृष्णा की परिभाषा? 
झरती तारिका, थिरकते अश्रुबिंदु . . . है तेरा हृदय स्पंदित 
मौन अधर पर . . . क्यों प्रियतम का नाम . . . है गुप्त-कंपित? 
 
पदताल में अग्नि स्फुरित . . . मृणाल सी देख अंगुलियाँ
मन अस्थिर व काया अधीर . . . कटि पर स्वेदित मंजरियाँ
मदमत्त से पल्लव . . . पर्वत, दिगंत में . . . सुलोलित गीतिका
ध्वनि में रागिनी . . . नृत्यरता कामिनी . . . मुद्राएँ-वीथिका। 
 
आ!! मेघ वाहिनी . . . आ!! मधुर शिंजन . . . की निर्झरिणी 
अंग-अंग कुमकुमित नृत रंग, सखी! तुम ही हो चित्रिणी
ऋतुएँ गाती हैं सप्तस्वर के गीत . . . मन है उदास . . . तथापि
यह आकाश नहीं बरसता नितांत . . . हाँ, निदाघ में कदापि। 
 
लावण्यमयी लास्या! नूपुर के दीर्घ राग में है क्यों उजास 
प्रणय निवेदन, आह, रच रहा देखो, अर्वाचीन का इतिहास। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें