स्वतंत्रता
अनिमा दास
(सॉनेट)
रच न पाऊँ एक शब्द, क्या रचूँगी कविता
स्वप्न-भारत . . . स्वतंत्र भारत . . . या नग्न भारत
क्या लिखूँ किस हेतु उदित हुआ यह सविता
इतिहास मौन वर्तमान मौन तुम भी आरत।
हुआ है विकास, अमानवीय धारणाओं का
आई है क्रांति अकल्पनीय अत्याचार की
विकास होता रहा उन्मुक्त वासनाओं का
क्रांति भी है अनवरत निर्मम अविचार की।
क्या हुआ है स्वतंत्र? कौन हुआ है स्वतंत्र?
सीमांत? पशु-पक्षी? पर्वत या स्वार्थ-नीति?
मृतवत् शरीर . . . अश्रुदग्ध आत्मा का अमंत्र?
निस्तब्ध द्रष्टा मैं, हृदय में प्रश्नों की है भीति।
जीवित हूँ अथवा मृत, पृथी मेरी है क्षताक्त
वह है क्रूर आततायी, मैं सदा रहूँगी रक्ताक्त।
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