कलंक भी है सौंदर्य 

15-05-2023

कलंक भी है सौंदर्य 

अनिमा दास (अंक: 229, मई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

(सॉनेट)
 
मंजुरिम सांध्य कुसुम . . मधुर ज्योत्स्ना में दीर्घ प्रतीक्षा
तुम्हारा आगमन एक भ्रमित कामना मात्र लेती है परीक्षा
दृगंचल में शायित इच्छा . . इच्छा में अनन्य अभिसार
कल्पना ही कल्पना है . . वर्णिका में है अभ्याहार। 
 
अस्ताचल की अरुणिमा में मंत्रमुग्ध सा मुखमंडल
कृत्रिम क्रोध से स्पंदित हृदय में नव प्रणय पुष्पदल
द्वार से द्वारिका पर्यंत कृष्णछाया, हाँ! क्यों कहो? 
ऐ! लस्या-लतिका . . ऐ! मानिनी मदना . . शून्य में बहो। 
 
कलंक भी सौंदर्य है . . कहा था मुझे सुनयना ने कभी
सौम्य-मृदु अधरों से छद्म-शब्दों का मधु झर गया तभी 
देहान्वेषी ने उसके अंगों का अग्नि से किया अभिषेक
तथापि निरुत्तर प्रतिमा में शेष नहीं था मुक्ति का अतिरेक। 
 
स्वप्नाविष्ट प्रकृति . . अंतर्मुखी विवेचना में है पुनः संध्या
तिक्त वासना में है चीत्कार करती शताब्दी की बंध्या। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें