व्यथित भारती 

01-08-2023

व्यथित भारती 

अनिमा दास (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


(सॉनेट) 
 
वह अतीत भी रक्तिम था यह समय भी रक्तिम होगा 
वर्तमान के वस्त्र में एक भविष्य भी रहेगा भयभीत 
सिंदूरी मृण में तल्लीन होता श्वास यदि अंतिम होगा 
क्यों स्वर्ग की प्रतीक्षा में नित्य, है मौन हृदय-प्रमीत? 
 
जल में थल को लीन होते करती हूँ सदा निरीक्षण 
अनाहूत सी रश्मि मैं, होती संकुचित अशुद्ध वायु में 
न होती परिपूर्ण अतिमित अभीप्सा एवं प्रतीक्षण 
मैं रहती अस्पृश्य व प्रलंबित देह की रिक्त स्नायु में। 
 
जिसकी सीमा उदीची हिमगिरि में होती उदासीन 
जिसकी वेदना होती दक्षिण गह्वर की भित्ति प्रस्थ 
क्यों आज यह म्लान, उन्मत्त, उन्मादन में है आसीन 
क्या यह भारतवर्ष नहीं है मेरे कुमानस में गर्भस्थ? 
 
मैं समय सीमांत की स्वर्णिम भारती! चाहूँ होना मुक्त 
भ्रष्टाचार से निपीत काल से मैं, हो जाऊँ आज उन्मुक्त। 

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