मृत्यु कलिका-सॉनेट 2
अनिमा दास
उत्सव मृत्यु का है . . . उत्साह है देह-दाह का
रम्य लगता है यह क्षण . . है चतुर्दिक सुगंधित
घृत में काष्ठ . . काष्ठ में अग्नि . . अग्नि में काया
है शून्यमंडल अद्य वाष्पित-व्यथा से पूर्ण पूरित।
अंश-अंश मृदा में . . . मृदा के तत्त्व में होकर लीन
होगी निश्चिंत ये समग्र क्लांति भ्रान्ति व अनंती
जैसे मदमयी अप्सरा सी प्रणय क्रीड़ा में तल्लीन
जैसे सिंधु गर्भ में होती समर्पित अतृप्त स्रोतवती।
हाः! मृत्यु गीत में शाश्वत लालित्य . . है आत्मलोप
अंतरिक्षीय मौनता में लुप्त हो चला वर्तमान
हृद में न प्रश्न कोई हा! हा! न प्रतिवाद न प्रत्यारोप
केवल सौम्य . . शीकर सा . . शीतल अनंत प्रतिभान।
मेरी मृत्यु कलिका अद्य हुई . . नवयौवना दामिनी
महायात्रा के महापर्व में नृत्यरता कमनीय कामिनी॥
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