क्लांति 

01-10-2025

क्लांति 

अनिमा दास (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

(सॉनेट) 
 
इस तृष्णा से तुम हो क्यों अपरिचित 
इस अग्नि से तुम हो क्यों अवरोधित 
मेरे शून्य महाग्रह का यह तृतीय प्रहर 
है मौन विभावरी का यह शेष अध्वर 
 
इस क्षुधा से भी तुम हो ऐसे अज्ञात 
इस श्रावण से हो तुम जैसे प्रतिस्नात 
मेरी परिधि में नहीं अद्य उत्तर तुम्हारा 
मेरे परिपथ पर नहीं कोई शुक्रतारा। 
 
इस एकांत महाद्वीप पर है ग्रीष्मकाल 
भस्मसात निशा . . . व पीड़ा-द्रुम विशाल 
समग्र सत्व है निरर्थक . . . अति असहाय 
मृत-जीवंत, स्थावर-जंगम सभी निरुपाय
 
इस अंतहीन मध्याह्न की नहीं है श्रांति
ऊषा के दृगों से क्षरित अश्रुधौत क्लांति। 

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