वर्षा
अनिमा दास
(सॉनेट)
वर्षा . . . वर्षा . . . आहा! वर्षा के आलिंगन में गिरि पल्लव
शी . . . शी करती गुप्त अभीप्सा में हाय! द्रवित अवयव
निःशब्द-नादित, नादित-निःशब्द नीरव निशा नर्तकी
मंद मंद मुस्काती मौन वाणी में . . . जैसे तंद्रा थिरकती।
श्रावण! ऐ श्रावण! . . . देखो न . . . यह वैशाख सा तपन
दक-दक करता वस्त्र . . . थर-थर थरता मन का स्पर्शन
न . . . न . . . करती यह स्वप्नमयी शय्या . . . कभी यह कुसुम
संध्या के घुँघरू में छम-छम मैं . . . कभी छन-छन तुम।
दो कोठरियों पर मृदु उँगलियाँ, अधर लगे उष्म-सिक्त
मुक्त-मुग्ध . . . उन्मुक्त कटि, यह उन्मादी-बंधन अतिरिक्त
हाँ . . . हाँ . . . मोहना! बूँद-बूँद . . . टिप-टुप . . . टुपुर में यति
प्रिया . . . तुम्हारी प्रिया मैं . . . कभी तुम देव . . . कभी मैं रति।
आहा! सुनो! कोलाहल क्षितिज में, रिक्त जीवन दीपक
मैं लीन हो चुकी . . . है ऊर्ध्व उड़ चुका, इस उर का धुमक।
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