प्रेम पर्व (सॉनेट-30)
अनिमा दास
मंदर पर सप्तरंग का आँचल, सखी, आओ उत्सव गीत गाओ
मदमत्त भ्रमर करे पुष्प संग प्रीत . . . कृष्ण रास संग रच जाओ
मुग्ध मन नृत्य करता . . . है स्निग्ध किरणों में सम्पूर्णतः तन्मय
रूप यौवन का हो रहा तीर्ण . . . गमक रहा . . . कर रहा अनुनय।
प्रेम हो रहा व्यक्त सखी कि रक्तिम हुआ आह! प्राच्य आकाश
स्वप्नगुच्छ हुआ स्फुटित . . . शतदल के सरोवर में आया प्रभास
पीत रंग ने किया स्पर्श . . . मुखमंडल हुआ स्वर्ण सा अरुणित
मंद-मंद स्वर में कहा प्रेम ने ‘सुनो प्रिया तुममें मैं हूँ प्लावित।’
इस नगर में नहीं रहा जीवन यदि . . . स्वर्गीय-सम्भव-सरल
यदि वसंतकुंज में भी . . . समस्त पीड़ाएँ रहीं, सदैव जलाहल
कोई प्रतिवाद नहीं होगा . . . न होगा मृदु वेणु-ध्वन, न वंशीवट
दृगोपांत में अश्रुमिश्रित परागरेणु से सिक्त होगा कालिंदी तट।
प्रेम पर्व की वर्तिका हो रही प्रज्वलित . . .जीवन हुआ फाल्गुन
मन के कोण-अनुकोण में गूँज रही गीतप्रिया की . . . मधुर धुन।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- ऐतिहासिक
- कविता
-
- उक्त-अनुक्त
- कलंक भी है सौंदर्य
- कलंक भी है सौंदर्य
- नर्तकी
- नारी मैं: तू नारायणी
- पद्म प्रतिमा
- पीड़ा पर्व (सॉनेट 23)
- प्रश्न
- प्रेम पर्व (सॉनेट-26)
- प्रेम पर्व (सॉनेट-30)
- प्रेम पर्व (सॉनेट-38)
- मनोकामना
- मुक्ति (सॉनेट)
- मृत्यु कलिका
- मृत्यु कलिका (सॉनेट-23)
- मृत्यु कलिका – 01
- मृत्यु कलिका-सॉनेट 1
- मृत्यु कलिका-सॉनेट 2
- मेघ मल्हार
- वर्षा
- व्यथा का शृंगार
- व्यथित भारती
- व्याकरण
- स्त्री का स्वर
- स्वतंत्रता
- स्वप्नकुमारी
- हंसदेह
- पुस्तक समीक्षा
- विडियो
-
- ऑडियो
-