वह सारा उजाला

15-11-2021

वह सारा उजाला

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

    तुम्हारी स्मृतियों में ही क़ैद रहा 
    वह सारा उजाला 
    कि जिनसे अँखुआती रहीं 
    धान के बिरवे की तरह 
    कुछ लालसायें 
    जिनका गहरा निखार 
    समझाता रहा कि
    अनुभव निर्दोष होता है। 
 
    ये लालसायें
    मेरे पास आराम से रहती हैं 
    औसत सालाना बारिश की तरह 
    लेकिन 
भलमनसाहत में कभी-कभी 
सोचता हूँ कि
क्या प्रेम 
एक सुंदर ग्रहण है? 

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