रूठकर न जाओ हँस के जाओ बुरा क्या है
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
रूठकर न जाओ हँस के जाओ बुरा क्या है
ये दिल किसी और से लगाओ गिला क्या है।
जाते जाते इतना तो हक़ दे दो कि पूछूँ तुमसे
जो भी हुआ आख़िर उसमें मेरी ख़ता क्या है।
चमकीले काँच के टुकड़ों पर मर मिटने वाले
मेरे बाद सोचोगे कि खोया क्या पाया क्या है।
उदास मौसम में कर के याद रोओगे ज़ार ज़ार
इन्हीं लम्हों में जानोगे वफ़ा क्या है दग़ा क्या है।
यदि किसी मोड़ पर हो गया आमना-सामना
तब बताना मुझे ज़िन्दगी में तेरी ख़ुशनुमा क्या है।
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