ग़ज़लों की नई आमद-सितारों का कारवां 

01-05-2023

ग़ज़लों की नई आमद-सितारों का कारवां 

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा (अंक: 228, मई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

समीक्षित पुस्तक: सितारों का कारवां (ग़ज़ल संग्रह)
लेखक: डॉ. दिनेश जाधव
प्रकाशक: आर के पब्लिकेशन, मुंबई

 

डॉ. दिनेश जाधव का तीसरा ग़ज़ल संग्रह ‘सितारों का कारवां’ आर के पब्लिकेशन मुंबई द्वारा इस वर्ष प्रकाशित होकर आ गया है। डॉक्टर दिनेश जाधव का यह तीसरा ग़ज़ल संग्रह मुख्य रूप से प्रेम की पीर से सम्बन्धित ग़ज़लों अशआर और कुछ कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह की रचनाओं से गुज़रते हुए यह महसूस होता है कि कवि अपने जीवन में प्रेम से जुड़ी संवेदनाएँ को बहुत गहराई से महसूस करता है। प्रेम की संवेदनाएँ कभी एकांगी नहीं होती। दो लोगों का प्रेम उदात्त मानवीय मूल्यों की झाँकी होती है जिसके आधार पर ही इस जीवन का क्रम चलता है। 

डॉ. दिनेश जाधव की ग़ज़लों से गुज़रते हुए यह महसूस होता है कि हिंदी में ग़ज़लों को लेकर जो नए प्रयोग हो रहे हैं उन प्रयोगों के साथ अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने में कहीं कोई कमी डॉ. दिनेश जाधव ने नहीं छोड़ी है। प्रेम की पीर का यह कवि नई हिंदी कविता में ग़ज़लों को लेकर जिस तरह से प्रयोग लगातार कर रहा है उससे एक चीज़ महसूस होती है वह यह कि हमारे जीवन में जिस तरह से बाज़ार हावी हो रहा है, जिस तरह से मानवीय सम्बन्धों में प्रेम और उससे जुड़ी हुई संवेदना को लेकर बदलाव हो रहे हैं, उनको बड़ी आसानी से रेखांकित किया जा सकता है। 

जाधव जी की ग़ज़लें सहज सरल और सपाट भाषा में लिखी हुई ग़ज़लें हैं। कोई भी हिंदी प्रेमी उन्हें आसानी से समझ सकता है। किताब में उर्दू के शब्द जो कि सामान्य चलन में नहीं है, उनके अर्थ भी दिए हुए हैं जिससे पाठकों को उनके अर्थ समझने में किसी तरह की कोई दुविधा नहीं होती। कवि दिनेश जाधव जिस तरह की ग़ज़लें लिख रहे हैं वह अपने आप में प्रयोग धर्मिता का अनूठा उदाहरण है। 

दिनेश जाधव जी मूल रूप से बॉटनी के प्रोफ़ेसर हैं। अपनी ग़ज़लों के माध्यम से वे जब मन के अंदर गड़े हुए प्रेम के भाव से उद्वेलित होते हैं और उस भाव को काग़ज़ों पर उतारते हैं, तो यह साफ़ दिखाई देता है कि यह एक सच्चे और सरल हृदय की अपनी आकांक्षाएँ, अपने सपने और सुख और दुख का सहज बयान है। एक तरह से यह एक मन का दूसरे सुधी मन से संवाद है जो पाठकों के साथ वे करते हुए दिखाई पड़ते हैं। प्रेमी अपनी प्रेमिका को याद करता है, उसके साथ बिताए हुए सपनों को याद करता है, उसके द्वारा किए हुए वादों को याद करता है और उन वादों उन सपनों का टूटना बिखरना इस तरह से सृजनात्मक कार्यों द्वारा सभी के हृदय को जोड़ देता है। 

 प्रेम कभी एकांगी नहीं होता है। वह अपने साथ अपने पूरे समाज को जोड़ देता है। आज हम और आप जिस समय, जिस काल में रह रहे हैं, उसमें यह बड़ा महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि हम अपनी संवेदनाओं को बचा कर रखें क्योंकि यह संवेदनाएँ ही हमें मनुष्य बनाती हैं। यह संवेदना ही हैं जो हमारी थाती बनकर आने वाली पीढ़ियों को अपने इतिहास, अपनी संस्कृति से परिचित कराती है। 

इस संग्रह में जो कविताएँ हैं वह भी बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं। कुछ कविताएँ प्रकृति प्रेम को लेकर हैं। जैसा कि मैंने कहा कि जाधव जी बॉटनी के प्रोफ़ेसर हैं तो प्रकृति को लेकर भी उनकी चिंताएँ इन कविताओं के माध्यम से मुखर होती हैं। कई ग़ज़लों में, कई बड़े शायरों द्वारा कही गई वह बातें जो कि हम अधिकांश रूप से जीवन में ‘कोट’ करते हैं, उन कथनों को लेकर एक लंबी कविता लिखी गई है। ऐसा लगता है कि जैसे अपने पुरखे पुरनिया की कही हुई बातों को नए संदर्भों में उदाहरणों के साथ जोड़कर, समाज के अंदर फिर से उन्हें रोपने का काम, कवि करता है। 

इन कविताओं की प्रासंगिकता के प्रश्न के संदर्भ में मैं यही कहना चाहूँगा कि यह समाज को और अधिक उदार और अधिक सरल बनाने की जद्दोजेहद से जुड़ी हुई कविताएँ दिखाई पड़ती हैं। सितारों का कारवां दरअसल प्रेम की पीर का एक ऐसा शामियाना है जिसके अंदर सारे भाव, सारी संवेदनाएँ हमको दिखाई पड़ जाती हैं। इस कारवां में सुख भी हैं, दुख भी है, अच्छाई भी है और बुराई भी है। एक दम जीवन की रवानी की तरह। कहीं-कहीं आक्रोश है लेकिन अधिकांश जगहों पर बीते हुए कल को स्वीकार करके आगे बढ़ने की प्रेरणा भी है। इन ग़ज़लों में एक महत्त्वपूर्ण बात जो कि रेखांकित करने जैसी है वह यह है कि इन तमाम ग़ज़लों को पढ़ते हुए बहुत सारी ऐसी पंक्तियाँ हैं जो एकदम से आपको चमत्कृत कर देती हैं। उनमें एक तरह का नयापन है। 

अपनी हिसाब ग़ज़ल में वह यह बात स्पष्ट करते हैं कि उनके पास हर सवाल का जवाब है। वे प्रेमिका के कहे हुए हर शब्दों का हिसाब रखते हैं लेकिन वह जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव के बाद ऊँचे हौसलों का ख़्वाब रखते हैं। ज़माना कितना भी बदले, लेकिन वह चंद दोस्तों तो हमेशा अपने ख़िलाफ़ रहते हैं। तन्हाई हर कहीं अदब से चली आती है मगर महफ़िल में जाकर महफ़िल को आबाद रखने की जो एक सामाजिक नियति है उस नियति का पालन ग़ज़लकार ख़ुद करते रहते हैं। रिश्तोंं से कभी निकले नहीं है लेकिन दुश्मनों के हिसाब-किताब वे बेहिसाब रखते हैं। इसी तरह अपनी ग़ज़ल में वे लिखते हैं कि उनके होने पर ही किसी को एतराज़ रहा और उनकी आँखों में हमेशा इंतज़ार रहा। जीवन के प्रति, प्रेम के प्रति उनका अपना एक सकारात्मक दृष्टिकोण है जो इस कविता के माध्यम से दिखाई पड़ता है। 

ठीक इसी तरह दुनिया नामक अपनी ग़ज़ल में कहते हैं कि काश दुनिया उनकी हैरानी समझ पाती। उनका जो ग़ुस्सा है, उनका जो दर्द है, उसके पीछे की परेशानी समझ पाती। आँखें जो हमेशा लोगों से मिलने पर मुस्कुराती है, उन आँखों की वीरानी भी कोई समझ पाता। उनकी उदासी को भी, उनकी नादानी को भी कोई समझ पाता। एक टुकड़ा ज़मीन का लाश को मयस्सर हो काश, यह दुनिया इस कहानी को समझ पाती। कहने का अर्थ कि अपनी तमाम परेशानियों को बताते हुए भी अंतिम शेर में वह एकदम मानवता की उदात्त भावना को स्पष्ट करते हैं कि जीवन के अंत में होना वही है जो ईश्वर ने सबकी नियति में लिख रखा है और उसके लिए जो अंतिम आवश्यकता है वह हर व्यक्ति की पूरी हो ऐसी कवि की कामना है। ठीक इसी तरह अपने रहस्य नामक ग़ज़ल में वे कहते हैं कि यादों के पल में जीवन समाया है एक बीज में दर्द समाया है। मोहब्बत ख़ुदा की नेमत है और इसी में संसार समाया है। इस तरह प्रेम और मोहब्बत के व्यापक स्वरूप को अपनी ग़ज़लों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इश्क़ नामक अपनी ग़ज़ल में वह कहते हैं कि बरसी होगी यह घटा बनके कहीं ठंडी हवाएँ चुपके से यह कह जाती हैं, चाँदनी देखो पाँव समेट रही है पीली रोशनी आसमाँ पर बह जाती है। इन तरह के शब्दों में, इन तरह के कथनों के माध्यम से वे अपने मनोभावों को अपने मन की पीड़ा को व्यक्त करते हैं। 

उनकी एक ग़ज़ल है जिसका नाम है ‘साथ’ और उसमें वह पहले ही शेर में कहते हैं बुरे वक़्त में साथ देता नहीं कोई अच्छा वक़्त पास आने देता नहीं कोई। तो यह जो दुनिया की दुविधा है उसका जो यह दोहरा चरित्र है कहीं न कहीं उस चरित्र को सामने लाने का प्रयास व इससे शेर के माध्यम से करते हैं। इस तरह से तेरी याद में नामक अपनी ग़ज़ल में वह पहले ही शेर में कहते हैं “कभी जी भर आता है मेरा तेरी याद में कभी जी उचट जाता है तेरी याद में”। मतलब उसी प्रेम की दास्तान में मन भी लगता है और उन्हीं दास्तानों से मन उचट भी जाता है, तो यह उन रिश्तोंं की अपनी वेदना है, व्यथा है जो अक़्सर हर शायर महसूस करता रहा है। 

भारत के गौरवशाली इतिहास को भी वे अपनी कविताओं के माध्यम से याद करते हैं। भारत माँ को भी लेकर उनकी एक बड़ी महत्त्वपूर्ण कविता इस संग्रह में है जिसमें वह भारत माँ की व्याख्या करते हैं। वृक्षों की करुण गाथा के माध्यम से वे वृक्षों के महत्त्व को प्रतिपादित करते हैं। सड़क और ज़िन्दगी यह एक तुलनात्मक कविता है जिसमें वह ज़िन्दगी की तुलना सड़क से करते हैं कि कैसे सीधी चिकनी सपाट सड़कों पर ज़िन्दगी भली मासूम-सी लगती है डरी सहमी-सी लगती है। ज़िन्दगी का कुछ नहीं बिगड़ रहा लेकिन उस ज़िन्दगी को जीते हुए जीवन कितना कठिन होता है, उसकी तरफ़ इशारा करते हैं। प्रकृति की सुनो यह एक तरह से शीर्षक ही आदेशात्मक है लेकिन यह समसामयिक संदर्भों में पर्यावरण को लेकर उनकी चिंताओं को बहुत गंभीरता से व्यक्त करता है। पर्यावरण और प्रकृति को लेकर ही उनकी एक और महत्त्वपूर्ण कविता है औरत और प्रकृति। जहाँ पर पहली पंक्ति में कहते हैं कि जब भी तुम्हें देखता हूँ एक अजब सा ख़्याल आता है कि ईश्वर ने पहले तुम्हें रचा या प्रकृति को? कहीं न कहीं नारी की जो गरिमा है और प्रकृति का जो स्वरूप है दोनों को लेकर एक महत्त्वपूर्ण कविता इस कविता को माना जा सकता है। 

इस तरह से हम देखते हैं कि अपनी तमाम ग़ज़लों और कविताओं के माध्यम से व्यक्तिगत प्रेम सम्बन्ध, उसके सुख-दुख, उसके सपने इत्यादि के साथ-साथ पूरे मानवीय समाज का जो वैश्विक स्वरूप है उसकी जो वर्तमान में चिंताएँ हैं चाहे वह प्रकृति को लेकर हो पर्यावरण को लेकर हों, उन तमाम पहलुओं पर विस्तार से अपनी क़लम डॉक्टर दिनेश जाधव चलाते हैं। 

मैं डॉक्टर दिनेश जाधव को उनकी इस तीसरी ग़ज़ल संग्रह के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ। आर के पब्लिकेशन मुंबई को बधाई देता हूँ कि जिन्होंने बड़े सुंदर कलेवर के साथ, बड़े सुंदर आवरण के साथ इस पुस्तक को प्रकाशित किया है। शीघ्र ही अमेज़न पर यह संग्रह उपलब्ध होगा ऑनलाइन और पाठक दिल खोलकर इस संग्रह का स्वागत करेंगे। इस पर अपनी आलोचनाएँ, समीक्षाएँ प्रस्तुत करेंगे। जिससे कवि का मनोबल बढ़ेगा और हमें विश्वास है कि आने वाले दिनों में जीवन, प्रकृति, समाज, प्रेम इत्यादि को लेकर हम डॉक्टर दिनेश जाधव जी के मन की स्थितियों का आकलन उनकी नई रचनाओं के माध्यम से कर सकेंगे। 

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा 
हिंदी व्याख्याता 
के एम अग्रवाल महाविद्यालय 
कल्याण पश्चिम 
महाराष्ट्र

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