हर मुलाक़ात के बाद

01-04-2024

हर मुलाक़ात के बाद

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)


(बहर मुक्त ग़ज़ल)
 
हर मुलाक़ात के बाद कुछ न कुछ अधूरा रह गया
तेरे साथ वाला वो मौसम मेरे अंदर ठहरा रह गया। 
 
हरसिंगार झरता रहा पूरी रात चाँदनी को पीते हुए
ओस से लिपटकर वह सुबह तक बिखरा रह गया। 
 
तुम्हारे बाद के क़िस्से में तो गहरी उदासी छाई रही
उन यादों का शुक्रिया कि जीने का आसरा रह गया। 
 
रोशनी के साथ तो कितना शोर शराबा आ जाता है
गुमनाम जद्दोजेहद के साथ तो बस अँधेरा रह गया। 
 
आवारगी में लिपटी हुई रंगीन रातों के क़िस्से सुनके
बस अपने पाँव पटकता सलीक़ेदार सवेरा रह गया। 

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