ताशकंद उज़्बेकिस्तान से जुड़ी 4 कविताएँ

01-09-2025

ताशकंद उज़्बेकिस्तान से जुड़ी 4 कविताएँ

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

1. ताशकंद शहर

 

चौड़ी सड़कों से सटे
बग़ीचों का ख़ूबसूरत शहर ताशकंद 
जहाँ 
चिनार, खुबानी और शहतूत के पेड़ों की क़तार 
किसी का भी 
मन मोह लें। 
 
तेज़ रफ़्तार से
भागती हुई गाड़ियाँ 
सिगनल पर
विनम्रता और अनुशासन से
खड़ी हो जाती हैं 
ताकि पार कर सकें सड़क
मुझसे पैदल यात्री भी। 
 
तकनीक ने 
भाषाई सीमाओं को 
काफ़ी हद तक
ख़त्म कर दिया है
एनडेक्स से कैब बुला
आप घूम सकते हैं
पूरा शहर। 
 
ऑनलाईन ट्रांसलेशन ऐप भी
काम भर की बातचीत तो
करा ही देता है
उज़्बेकी और हिंदी में। 
 
अक्सर कोई उज़्बेकी
पूछ लेता है-
हिंदुस्तान? 
और मेरे हाँ में सर हिलाते ही
वह तपाक से कहता है-
नमस्ते! 
 
वैसे 
सलाम और रहमत कहना
मैंने भी सीख लिया
ताकि कृतज्ञता का
थोड़ा सा ही सही पर 
ज्ञापन कर सकूँ। 
 
इस शहर ने 
मुझे अपना बनाने की 
हर कोशिश की
इसलिए मैं भी
इस कोशिश में हूँ कि
इस शहर को
अपना बना सकूँ 
और इस तरह
हम दोनों की ही 
कोशिश जारी रही

 
2. ताशकंद 
 
ताशकंद को पहली बार
फरवरी की सर्द हवाओं में
बर्फ़ से लिपटे हुए देखा 
बर्फ़ का झरना
बर्फ़ का जमना
और बर्फ़ का आँखों में बसना
जितना दिलकश था
उतना ही ख़तरनाक भी
लेकिन दिलकश नज़ारों के लिए
ख़तरे उठाने की 
पुरानी आदत रही है
और आदतन
मैं उन मौसमी जलवों का
तलबगार हो गया। 
 
ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी से
याकुब कोलस रोड पर स्थित
मेरे बसेरे की दूरी
तीसरी विंस्टन सिगरेट के
लगभग
आख़िरी कश तक की थी
उसके बाद 
कैफ़े दोस्तान की गरमा गर्म काफ़ी
उन गर्म साँसों सी लगती
जो मुझसे दूर होकर भी
मेरे अंदर ही कहीं
बसी रहती हैं। 
 
अलीशेर नवाई, 
और फातिमा की काव्य पंक्तियों को पढ़ते हुए
कबीर, टैगोर, शमशेर
और अमृता प्रीतम याद आते रहे 
मैं कविता की इस आपसदारी से ख़ुश हूँ 
सरहदों के पार
बेरोक टोक सी
शब्दों की ऐसी यात्राएँ
कितनी मानवीय हैं! 
 
3. मौसम ए बहारा 
 
फ़रवरी में 
बर्फ़ पिघलते ही 
दबे पाँव हल्की मुस्कान के साथ
मौसम ए बहारा 
ताशकंद में दस्तक देने लगा है। 
 
गुलाबी ठंड, गुनगुनी धूप 
सुर्ख़ियों से लबरेज़ हैं
ताशकंद की सरज़मी पर 
बहारों की क़दमबोशी 
ऐसी है मानो 
प्रकृति के कैनवस पर 
जीवन उकेर दिया गया हो। 
 
लंबी सर्दियों की चुप्पी को
तोड़ते हुए 
हवाओं में 
मख़मली नरमी घुलने लगती है 
चिनार, शहतूत और खुबानी के दरख़्तों पर 
नई कोंपलें मुस्कुरा उठती हैं
बादाम के फूलों की भीनी महक
फ़िज़ाओं में घुलकर 
एक अल्हड़ नशा पैदा कर देती है
ये बदामशोरी 
किसे न दीवाना बना दें! 
 
शहर में 
एक अजीब सी 
ताज़गी घुल जाती है 
न सर्दियों की चुभन, न गर्मियों की तपिश 
बस एक नर्म ठंडक 
जो दिल के भीतर तक उतर जाती है। 
 
दरख़्तों की टहनियाँ, 
जो अब तक नंगेपन का बोझ ढोती थीं, 
एकाएक हरी चुनर ओढ़ लेती हैं
बादाम, आड़ू और चेरी के फूलों की 
सफ़ेद और गुलाबी पंखुड़ियाँ 
हवाओं में तितली बनकर उड़ती हैं। 
 
ताशकंद की पथरीली गलियाँ
जिन पर सर्दियों की उदासी जमी थी
अब रंग-बिरंगे फूलों के
ग़लीचों से सजी दिखाई पड़ती हैं
और आसमान? 
वह तो जैसे ख़ुद 
अपनी नीली चादर को 
और भी साफ़ सुथरा करके 
ताशकंद पर फैलाता है। 
 
दूर की पर्वत शृंखलाएँ 
अपने हिममुकुट के साथ 
बहार का अभिवादन करती हैं
हर कोना, हर दरख़्त, हर झरोखा 
गीत गाने लगता है— 
प्रेम का, पुनर्जन्म का, 
जीवन के पुनः अंकुरित होने का। 
 
ताशकंद में बहार
जैसे 
कोई पुरानी याद 
नए रंगों में 
फिर लौट आयी हो। 
 
4. मशहूर चोर्सू बाज़ार
 
शहर के बीचों-बीच
बड़े से नीले गुंबद के नीचे 
सजा रहता है 
चोर्सू बाज़ार। 
 
मोटी और गोल 
उज़्बेकी रोटियाँ/नान 
हरी सब्ज़ियाँ, फल 
और मसालों की ख़ुश्बुओं के बीच
यह बाज़ार
आप का स्वागत करता है। 
 
उज़्बेकी नान की
महक और गोलाई में 
आप जीवन चक्र का 
पूरा दर्शन 
खोज सकते हैं। 
 
यहाँ दालचीनी की लकीरों में
पुरानी कारवाँ-सराय की परछाइयाँ
और केसर में
रेशम-मार्ग की 
धूप का धड़कता अंश
आप महसूस कर सकते हैं। 
 
जो कहीं नहीं मिलता 
पूरे ताशकंद में 
उसके लिए 
एक विश्वास 
एक उम्मीद है 
यह चोर्सू बाज़ार। 
 
ताशकंद की संस्कृति 
और स्थानीय जीवनशैली का 
यह विशाल 
पारंपरिक बाज़ार 
ताज़ा मांस, मसाले, फल, सब्ज़ियाँ
इत्यादि स्थानीय 
उत्पादों के साथ साथ 
अपने शहर की
एक शान भी है। 
 
चोर्सू बाज़ार की भाषा में 
किसी हिन्दुस्तानी के लिए 
हिन्दी भी 
थोड़ी ही सही पर
मौजूद है
जो कि
एक सुखद आश्चर्य है। 

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