सत्य की खोज
सुमन कुमार घईपहले जब वह
सत्य खोजता था
तो राह में अक्सर
अंगारों से जलता था
अब सब शांत है
नया गाँधीवाद है
न कोई बोलता है,
न कोई देखता है
न कोई सुनता है
अगर कोई सुनता है
तो पहले गुनता है
फिर जिसकी चाहता है
उसीकी सुनता है
देखने वाला
केवल स्वार्थ की –
एक ही आँख खोलता है
बोलने वाला अपने शब्दों को
चाँदी से तौलता है
इसीलिए
अब वह जब
सत्य की खोज में निकलता है
तो राह में बुझे अंगारों की राख
में धँस जाता है
क्योंकि सब शांत है!!
4 टिप्पणियाँ
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अद्भुत लेखन। आपका पक्ष देखा, समझा भी। आप भारत से दूर हैं। यहाँ कुछ भी शान्त नहीं, एक झंझावात है, सन्नाटे में भी शोर है, कसमसाते हुए लोग हैं। गाँधीवाद वस्तुतः कोई वाद था, इस पर शोध की आवश्यकता है। नया गाँधीवाद ना ही पनपे यही ईश्वर से प्रार्थना है।
-
वर्तमान काल की पत्रकारिता भविष्य का कोई संकेत नहीं छोड़ता क्योंकि असमंजस में कभी भौतिकता कभी अनैतिकता अपना रहा है। सत्य को कल्पना या भूत में कोई घटित हुई कथा मानता है।
-
कटु सत्य... भौतिकता की अंधी दौड़ में फिसलती पत्रकारिता... बहुत नीची हुई ऊंचाईयां हैं....
-
सचमुच अब नया गांधीवाद है। जो शान्त है और स्वार्थ रूपी एक आँख खोलता है. ....।
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