हिन्दी साहित्य के पाठक कहाँ हैं? भाग - ४
सुमन कुमार घईप्रिय मित्रो,
बहुत दिनों के बाद साहित्य कुंज के नये अंक को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। कारण मेरी व्यक्तिगत स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हैं, जो कि अभी समाप्त नहीं होने वाली। मई, जून और जुलाई के अंकों के प्रकाशन के बारे में संदेह ही है क्योंकि जून में अपनी आँख के ऑपरेशन के बाद कितनी जल्दी सक्रिय हो पाऊँगा यह तो समय ही बतायेगा।
पिछले कुछ अंकों से हम लोग "हिन्दी साहित्य के पाठक कहाँ हैं" पर चर्चा कर रहे हैं। यह प्रश्न कुछ समय पहले फ़ेसबुक पर तेजेन्द्र शर्मा (यू.के.) ने उठाया था। तेजेन्द्र जी एक सफल कहानी लेखक हैं और उनकी कहानियों के संकलन लोकप्रिय हुए हैं। साहित्य कुंज के जिन पाठकों और लेखकों ने इस परिचर्चा में भाग लिया है और मैं उनका कृतज्ञ हूँ कि इस महत्वपूर्ण विषय की चर्चा को वह सजीव रख रहे हैं। अभी तक हम लोगों ने घर-परिवार और स्कूल शिक्षा में साहित्य पढ़ने के महत्व की बात की है। यह विषय बहुत विषद है और इसकी चर्चा यहाँ पर ही समाप्त नहीं हो जाती। इस बहुआयामी समस्या के अन्य पक्षों पर भी विचार करना आवश्यक है।
जो आधुनिक साहित्य मुद्रित या इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से उपलब्ध है, क्या वह पर्याप्त रूप से समृद्ध है कि पाठक पुस्तक को पढ़ना उसके मनोरंज का मुख्य विकल्प बन सके। इस इंटरनेट के युग में लिखित साहित्य की प्रतिस्पर्धा मनोरंजन अन्य के विकल्पों से है। लिखित साहित्य ही नहीं बल्कि पिछली सदी के मनोरंजन के सभी साधनों पर काली घटा छाती नज़र आ रही है। टीवी, सिनेचित्र, संगीत (सीडी, कैसेट और रेकॉर्ड) के सामने यूट्यूब ने एक सशक्त विकल्प खड़ा कर दिया है। ऑडियो बुक्स, ई-पुस्तकें भी मुद्रित साहित्य के लिए एक प्रतिद्वंद्वी बन कर खड़े हो गये हैं। दूसरी ओर साहित्य के उपभॊक्ता के लिए यह एक सस्ता और सुगम विकल्प भी हैं। इलेक्ट्रॉनिक क्रांति ने मनोरंजन के व्यवसाय को एक ऐसी दिशा दी है जिसकी संभावनाएँ असीमित हैं। हिन्दी साहित्य का लेखक और उसका पाठक इस क्रांति का कितना लाभ उठा सकता है यह विचारणीय है।
हिन्दी लेखन की गुणवत्ता के बारे में पहले भी कई बार बात कर चुका हूँ। किसी भी भाषा में साहित्य पटल विस्तृत होता है। इसे विधाएँ और उनकी भावाभिव्यक्ति की शैलियाँ विस्तार प्रदान करती हैं। परन्तु साहित्य का आधार भाषा होती है। भाषा का स्तर और शैली तो अलग हो सकती परन्तु व्याकरण के साथ समझौता नहीं किया जा सकता है। कहानी या उपन्यास में संवाद की भाषा में व्याकरण पात्र के अनुसार हो सकती है, परन्तु लेखक की व्याकरण हिन्दी साहित्य की व्याकरण ही रहेगी। आजकल के लेखन में यह दोष दिखायी देता है जो पाठक को खलता है और कथानक के सशक्त होते हुए भी वह साहित्य से टूटने लगता है। यह दायित्व लेखक का है कि वह लेखन से पहले अपने भाषा ज्ञान को समृद्ध करे। शब्दकोश का प्रयोग करने से कतराये नहीं। शुद्ध लिखना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की कहानी को बुनना। अगर हम लेखक ही अपने लेखन की गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखेंगे तो हमें कोई अधिकार नहीं है कि प्रश्न पूछें कि “हिन्दी साहित्य का पाठक कहाँ है”।
इस समस्या में प्रकाशक भी निर्दोष नहीं है। क्योंकि पाण्डुलिपि को प्रूफ़रीड करते हुए व्याकरण की अशुद्धियों की ओर ध्यान देना भी आवश्यक है। मुद्रित साहित्य और इलेक्ट्रॉनिक साहित्य की दशा देखते हुए लगता है कि दिन प्रतिदिन दशा बद से बदतर हो रही है। आजकल तो मुद्रित पुस्तकों के प्रकाशक उन पुस्तकों को बेहिचक प्रकाशित कर देते हैं जिनका लेखक पैसा देना चाहता है। जिस तरह से पहले साहित्य का उपभोक्ता जानता था कि अमुक प्रकाशक द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का एक निर्धारित स्तर होगा; अब ऐसा कहना कठिन होता जा रहा है। आजकल केवल वह लेखक ही प्रचलित हो रहा जो पुस्तक प्रकाशन और फिर उसकी “मार्केटिंग” के लिए पैसा खर्च रहा है। यहाँ प्रचलित शब्द का अर्थ लोकप्रियता बिल्कुल नहीं है। इस मार्केटिंग पर खर्च की राशि कीअधिक मात्रा का अर्थ यह नहीं की लेखक कुछ कमा रहा है; अगर वह कमा रहा है तो केवल ख्याति जो उसके अहं को संतोष प्रदान करती है, जिसका आर्थिक लाभ केवल प्रकाशक ही उठा रहा है। दूसरी ओर अगर अच्छे साहित्य की "मार्केटिंग" हो तो उसमें कोई दोष नहीं बल्कि अच्छा ही होगा।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पुस्तकों- ई-पुस्तकों और ऑडियो पुस्तकों की दशा तो और भी बुरी है। अधिकतर उन प्रकाशन संस्थानों की मालिक सॉफ़्टवेयर कंपनियाँ हैं, जो स्व-प्रकाशन (सेल्फ़ पब्लिकेशन) पर आधारित हैं। यानी इन प्रकाशकों का कोई लेना देना नहीं है कि क्या प्रकाशित हो रहा है, क्योंकि पाण्डुलिपि को कभी कोई नहीं पढ़ता। लेखक अपनी पाण्डुलिपि और कवर के चित्र को अपलोड करता है और ई-पुस्तक प्रकाशित हो जाती है। वर्तनी और व्याकरण या कथानक की गुणवत्ता इत्यादि पर कोई अंकुश नहीं है। प्रायः यह पुस्तकें निःशुल्क होती हैं क्योंकि लेखक को तो पैसे देने का प्रश्न ही नहीं है और दूसरी और सॉफ़्टवेयर कंपनी अपनी ऐप्प बेचकर या किराये पर देकर अपनी जेब भर लेती है। इस अराजकता के दौर में हिन्दी साहित्य का पाठक इस मीडिया से दूर हो रहा है। आवश्यकता है ई-पुस्तकों की ऐसी व्यवसायिक कंपनियों की जो अच्छी, संपादित ई-पुस्तकों को प्रकाशित करके बेचें, जिनसे लेखक की कमाई हो और पाठक की साहित्यिक क्षुधा शान्त हो।
संपादकीय लम्बा होता जा रहा है परन्तु अगली बार न जाने कब आप लोगों से बात करने का अवसर मिलेगा, इसलिए एक और बिंदु पर भी बात करना चाहता हूँ। मॉरीशयस में इस वर्ष विश्व हिन्दी सम्मेलन होने की तैयारियाँ हो रही हैं। इस सुबह मेरे मस्तिष्क में एक ही प्रश्न घूम रहा है कि इन सम्मेलनों का परिणाम क्या होता है? सरकार करदाता के करोड़ों रुपये खर्च कर देती है परन्तु अंत में नागरिक को क्या मिलता है? विश्व हिन्दी सचिवालय की वेबसाइट पर जानकारी खोजते हुए इन विश्व सम्मेलनों की प्रेस विज्ञप्तियाँ पढ़ने को मिलीं। रोचक तथ्य तो यह था कि प्रत्येक सम्मेलन के अंत में कुछ प्रस्ताव पारित हुए, परन्तु किसी भी विज्ञप्ति में इस बात की चर्चा नहीं थी कि इससे पूर्व सम्मेलन के पारित प्रस्तावों का क्या बना? नीचे इन सम्मेलनों की कुछ जानकारी विश्व हिन्दी सचिवालय के सौजन्य से चिपका रहा हूँ। आपसे आग्रह है कि इसमें दिये गए लिंक्स पर जाकर पूरी रिपोर्ट को पढ़ें, भविष्य में इस विषय पर भी चर्चा कर सकते हैं।
प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन
पहला विश्व हिंदी सम्मेलन १०-१४ जनवरी १९७५ तक नागपुर में आयोजित किया गया।
http://www.vishwahindi.com/hi/whc1.aspx
पहले विश्व हिंदी सम्मेलन का बोधवाक्य था- वसुधैव कुटुम्बकम।
सम्मेलन में पारित किए गए मंतव्य थे-
1. संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक भषा के रूप में स्थान दिया जाए।
2. वर्धा में विश्व हिंदी विद्यापीठ की स्थापना हो।
3. विश्व हिंदी सम्मेलनों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अत्यंत विचारपूर्वक एक योजना बनाई जाए।
द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन
दूसरे विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में २८ से ३० अगस्त १९७६ तक
http://www.vishwahindi.com/hi/whc2.aspx
पारित मंतव्य:
1. मॉरीशस में एक विश्व हिंदी केंद्र की स्थापना की जाए जो सारे विश्व की हिंदी गतिविधियों का समन्वय कर सके।
2. एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका का प्रकाशन हो जो भाषा के माध्यम से ऐसे समुचित वातावरण का निर्माण कर सके जिसमें मानव विश्व का नागरिक बना रहे।
3. सम्मेलन में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित इस प्रस्ताव का फिर से समर्थन किया गया कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में एक आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान मिले और सिफारिश की गई कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाया जाए।
तृतीय विश्व हिंदी सम्मेलन
तीसरे विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन भारत की राजधानी दिल्ली में २८ से ३० अक्तूबर १९८३ को हुआ।
http://www.vishwahindi.com/hi/whc3.aspx
पारित मंतव्य:
1. सम्मेलन के लक्ष्यों और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निर्मित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्थायी समिति का गठन किया जाए।
2. सम्मेलन की संगठन समिति को इस कार्य के लिए अधिकार दिया जाए कि वह भारत के प्रधान मंत्री से परामर्श करके उनकी सहमति से स्थायी समिति का गठन करे।
3. इस समिति में देश-विदेश के 25 सदस्य हों।
4. · इसके प्रारूप एवं संविधान, कार्य-विधि और सचिवालय की रूप रेखा निर्धारित करने के लिए यह समिति अपनी उप-समिति गठित करे जो तीन महीने के भीतर अपनी संस्तुति संगठन समिति को दे ओर उस पर कार्रवाई की जाए।
चौथा विश्व हिंदी सम्मेलन
http://www.vishwahindi.com/hi/whc4.aspx
चौथे विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन दो से चार दिसंबर १९९३ तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित किया गया।
पारित मंतव्य:
1. चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन की आयोजक समिति को यह अधिकार दिया जाता है कि वह भारत और मॉरिशस के प्रधान मंत्रियों से परामर्श करके तीन माह के अंदर एक स्थायी समिति एवं सचिवालय गठित करे जिसका लक्ष्य भविष्य में विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन करना तथा अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी का विकास और उत्थान करना होगा।
2. यह सम्मेलन पिछले तीनों विश्व हिंदी सम्मेलनों में पारित संकल्पों की संपुष्टि करते हुए 'विश्व हिंदी विद्यापीठ' की शीघ्रातिशीघ्र स्थापना की मांग करता है। साथ ही मॉरिशस में विश्व हिंदी केंद्र की स्थापना की मांग को दोहराता है।
3. सम्मेलन इस तथ्य पर संतोष व्यक्त करता है कि विश्व के अनेक विश्व विद्यालयों में हिंदी का अध्ययन और अध्यापन उत्तरोतर बढ़ता जा रहा है। यह सम्मेलन विभिन्न राष्ट्र सरकारों और विश्व विद्यालयों से अनुरोध करता है कि वे हिंदी पीठों की स्थापना उत्साहपूर्वक करें।
4. इस सम्मेलन का यह मंतव्य है कि विश्व के सभी देशों, विशेषकर भारत तथा भारतीय मूल की जनसंख्या वाले देशों के बीच सर्वविद संचार व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया जाए। हिंदी को प्राथमिकता देते हुए इन देशों के साथ आकाशवाणी, दूरदर्शन और समाचार समितियों के प्रगाढ़ संबंध स्थापित किए जाएं। इस संदर्भ में भारत और मॉरिशस के बीच हिंदी की समाचार समिति 'भाषा' की सेवा शुरु होने पर सम्मेलन प्रसन्नता व्यक्त करता है और इस ऐतिहासिक कदम के लिए मॉरीशस और भारत के प्रधान मंत्रियों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता है। सम्मेलन भारत से अनुरोध करता है कि हिंदी के दैनिक समाचार पत्र, पत्रिकाएं और पुस्तकें प्रकाशित करने में सक्रिय सहायता करे।
5. चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन की मान्यता है कि राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का प्रयोग और प्रभाव बढ़ा है लेकिन इसके बावजूद हिंदी को उसका उचित स्थान प्राप्त नहीं हो सका है। अतः यह सम्मेलन महसूस करता है कि हिंदी को उसका उचित स्थान दिलाने के लिए शासन और जन समुदाय विशेष प्रयत्न करे।
6. यह सम्मेलन विश्व के समस्त हिंदी प्रेमियों से अनुरोध करता है कि वे अपने निजी एवं सार्वजनिक कार्यों में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें और यह संकल्प लें कि वे कम से कम अपने हस्ताक्षरों, निमंत्रण पत्रों, निजी पत्रों और नामपट्टों में हिंदी का प्रयोग करेंगे।
7. इस सम्मेलन में आए विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने-अपने देशों के शासन को सम्मेलन की इस मांग से अवगत करायेंगे कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए वे सघन प्रयास करें ।
पंचम विश्व हिंदी सम्मेलन
पांचवें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में। तिथियां थीं- चार से आठ अप्रैल १९९६
http://www.vishwahindi.com/hi/whc5.aspx
सम्मेलन का केंद्रीय विषय था- आप्रवासी भारतीय और हिंदी। जिन अन्य विषयों पर इसमें ध्यान केंद्रित किया गया, वे थे- हिंदी भाषा और साहित्य का विकास, कैरेबियाई द्वीपों में हिंदी की स्थिति, एवं कंप्यूटर युग में हिंदी की उपादेयता।
पारित मंतव्य
1. यह सम्मेलन भारतवंशी समाज एवं हिंदी के बीच जीवंत समीकरण बनाने का प्रबल समर्थन करता है और यह आशा करता है कि विश्वव्यापी भारतवंशी समाज हिंदी को अपनी संपर्क भाषा के रूप में स्थापित करेगा एवं एक विश्व हिंदी मंच बनाने में सहायता करेगा।
2. सम्मेलन चिरकाल से अभिव्यक्त अपने मंतव्य की पुनः पुष्टि करता है कि विश्व हिंदी सम्मेलन को स्थाई सचिवालय की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। सम्मेलन के विगत मंतव्य के अनुसार यह सचिवालय मॉरिशस में स्थापित होना निर्णित है। इसके त्वरित कार्यान्वयन के लिए एक अंतर सरकारी समिति का गठन किया जाए। इस समिति का गठन मॉरीशस एवं भारत सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। इस समिति में सरकारी प्रतिनिधियों के अलावा पर्याप्त संख्या में हिंदी के प्रति निष्ठावान साहित्यकारों को सम्मिलित किया जाए। यह समिति अन्य बातों के साथ-साथ सचिवालयी व्यवस्था के अनेकानेक पहलुओं पर विचार करते हुए एक सर्वांगीण कार्यक्रम योजना भारत तथा मॉरीशस की सरकारों को प्रस्तुत करेगी।
3. यह सम्मेलन सभी देशों, विशेषकर उन देशों जहाँ भारतीय मूल के लोग तथा आप्रवासी भारतीय बसते हैं की सरकारों से आग्रह करता है कि वे अपने देश में विभिन्न स्तरों पर हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था करें।
4. यह सम्मेलन विश्व स्तर पर हिंदी भाषा को प्राप्त जनाधार और उसके प्रति जनभावना को देखते हुए सभी देशों, जहाँ भारतीय मूल तथा आप्रवासी भारतीय बसते हैं, वहाँ के हिंदी प्रचार-प्रसार में संलग्न स्वयं सेवी संस्थाओं/ हिंदी विद्वानों से आग्रह करता है कि वे अपनी-अपनी सरकारों से आग्रह करें कि वे हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने के लिए राजनयिक योगदान तथा समर्थन दें।
5. यह सम्मेलन भारत सरकार द्वारा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय स्थापित करने के निर्णय का स्वागत करता है और आशा करता है कि इस विश्व विद्यालय की स्थापना से हिंदी को विश्वव्यापी बल मिलेगा।
छठा विश्व हिंदी सम्मेलन
लंदन में १४ से १८ सितंबर १९९९
http://www.vishwahindi.com/hi/whc6.aspx
सम्मेलन का केंद्रीय विषय था- हिंदी और भावी पीढ़ी।
पारित मंतव्य:
1. विश्व भर में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन, शोध, प्रचार-प्रसार और हिंदी सृजन में समन्वय के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय केंद्र सक्रिय भूमिका निभाए।
2. विदेशों में हिंदी शिक्षण, पाठ्यक्रमों के निर्धारण, पाठ्य पुस्तकों के निर्माण, अध्यापकों के प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था भी विश्वविद्यालय करे और सुदूर शिक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाए।
3. मॉरीशस सरकार अन्य हिंदी-प्रेमी सरकारों से परामर्श कर शीघ्र विश्व हिंदी सचिवालय स्थापित करे।
4. हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में मान्यता दी जाए।
5. हिंदी की सूचना तकनीक के विकास, मानकीकरण, विज्ञान एवं तकनीकी लेखन, प्रसारण एवं संचार की अद्यतन तकनीक के विकास के लिए भारत सरकार एक कंद्रीय एजेंसी स्थापित करे।
6. नई पीढ़ी में हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए आवश्यक पहल की जाए।
7. भारत सरकार विदेश स्थित अपने दूतावासों को निर्देश दे कि वे भारतवंशियों की सहायता से विद्यालयों में एक भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण की व्यवस्था करवाएं।
सप्तम विश्व हिंदी सम्मेलन
http://www.vishwahindi.com/hi/whc7.aspx
केंद्रीय विषय (थीम) पर केंद्रित रहा, वह था- विश्व हिंदी- नई शताब्दी की चुनौतियां।
पारित मंतव्य:
1. संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाया जाए।
2. विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पीठों की स्थापना की जाए।
3. हिंदी भाषा और साहित्य का प्रचार-प्रसार, हिंदी शिक्षण संस्थाओं के बीच संबंध तथा भारतीय मूल के लोगों में हिंदी के प्रयोग के प्रचार के उपाय किए जाएं।
4. हिंदी के प्रचार हेतु वेबसाइट की स्थापना और सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग हो।
5. हिंदी विद्वानों की एक विश्व निर्देशिका का प्रकाशन किया जाए।
6. विश्व हिंदी दिवस का आयोजन हो।
7. कैरेबियाई हिंदी परिषद की स्थापना की जाए।
8. दक्षिण भारत के दस विश्वविद्यालयों में हिंदी विभाग की स्थापना की जाए।
9. भारत में एम. ए. हिंदी के पाठय़क्रम में विदेशों में रचित हिंदी लेखन को समुचित स्थान दिलाया जाए।
10. सूरीनाम में हिंदी शिक्षण का संवर्धन किया जाए।
अष्ठम विश्व हिंदी सम्मेलन
http://www.vishwahindi.com/hi/whc8.aspx
आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन १३ जुलाई २००७ से १५ जुलाई २००७ तक अमेरिका के प्रसिद्ध न्यू यॉर्क नगर में हुआ। इस सम्मेलन का केंद्रीय विषय था- विश्व मंच पर हिंदी।
पारित मंतव्य:
1. विदेशों में हिंदी शिक्षण और देवनागरी लिपि को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से दूसरी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के लिए एक मानक पाठ्यक्रम बनाया जाए तथा हिंदी के शिक्षकों को मान्यता प्रदान करने की व्यवस्था की जाए।
2. विश्व हिंदी सचिवालय के कामकाज को सक्रिय एवं उद्देश्यपरक बनाने के लिए सचिवालय को, भारत तथा मॉरीशस सरकार, सभी प्रकार की प्रशासनिक एवं आर्थिक सहायता प्रदान करें और दिल्ली सहित विश्व के चार-पांच अन्य देशों में इस सचिवालय के क्षेत्रीय कार्यालय खोलने पर विचार किया जाए। सम्मेलन सचिवालय से यह आह्वान करता है कि हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए विश्व मंच पर हिंदी वेबसाईट बनायी जाए।
3. हिंदी में ज्ञान-विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी विषयों पर सरल एवं उपयोगी हिंदी पुस्तकों के सृजन को प्रोत्साहित किया जाए। हिंदी में सूचना प्रौद्योगिकी को लोकप्रिय बनाने के प्रभावी उपाय किए जाएं। एक सर्वमान्य व सर्वत्र उपलब्ध यूनीकोड को विकसित व सर्वसुलभ बनाया जाए।
4. विदेशों में जिन विश्वविद्यालयों तथा स्कूलों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन होता है, उनका एक डाटा-बेस बनाया जाए और हिंदी अध्यापकों की एक सूची भी तैयार की जाए।
5. यह सम्मेलन विश्व के सभी हिंदी प्रेमियों और विशेष रूप से प्रवासी भारतीयों तथा विदेशों में कार्यरत भारतीय राष्ट्रिकों से भी अनुरोध करता है कि वे विदेशों में हिंदी भाषा, साहित्य के प्रचार-प्रसार में योगदान करें।
6. वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में विदेशी हिंदी विद्वानों के अनुसंधान के लिए शोधवृत्ति की व्यवस्था की जाए।
7. केंद्रीय हिंदी संस्थान भी विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार व पाठ्यक्रमों के निर्माण में अपना सक्रिय योगदान दे।
8. विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पीठ की स्थापना पर विचार-विमर्श किया जाए।
9. हिंदी को साहित्य के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और वाणिज्य की भाषा बनाया जाए।
10. भारत द्वारा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर आयोजित की जाने वाली संगोष्ठियों व सम्मेलनों में हिंदी को प्रोत्साहित किया जाए।
नौवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन
9वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन दक्षिण अफ़्रीका के जोहांसबर्ग शहर में आयोजित किया गया।
http://www.vishwahindi.com/hi/whc9.aspx
पारित मंतव्य:
1. मॉरीशस में स्थापित विश्व हिंदी सचिवालय विभिन्न देशों के हिंदी शिक्षण से संबद्ध विश्वविद्यालयों, पाठशालाओं एवं शैक्षिक संस्थानों से संबंधित एक डाटाबेस का बृहत स्रोत केंद्र स्थापित करे।
2. विश्व हिंदी सचिवालय विश्व भर के हिंदी विद्वानों, लेखकों तथा हिंदी के प्रचार-प्रसार से संबद्ध लोगों का भी एक डाटाबेस तैयार करे।
3. हिंदी भाषा की सूचना प्रौद्योगिकी के साथ अनुरूपता को देखते हुए सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों द्वारा हिंदी भाषा संबंधी उपकरण विकसित करने का महत्वपूर्ण कार्य जारी रखा जाए। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हर संभव सहायता प्रदान की जाए।
4. विदेशों में हिंदी शिक्षण के लिए एक मानक पाठ्यक्रम तैयार किए जाने के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा को अधिकृत किया जाता है।
5. अफ़्रीका में हिंदी शिक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए और बदलते हुए वैश्विक परिवेश, युवा वर्ग की रुचि एवं आकांक्षाओं को देखते हुए उपयुक्त साहित्य एवं पुस्तकें तैयार की जाएं।
6. सूचना प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि के प्रयोग पर पर्याप्त सोफ्टवेयर तैयार किए जाएं ताकि इसका लाभ विश्व भर के हिंदी भाषियों और प्रेमियों को मिल सके।
7. अनुवाद की महत्ता देखते हुए अनुवाद के विभिन्न आयामों के संदर्भ में अनुसंधान की आवश्यकता है, अतः इस दिशा में ठोस कार्रवाई की जाए।
8. विश्व हिंदी सम्मेलनों के बीच अंतराल में विभिन्न देशों में विशिष्ट विषयों पर क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं। इनका उद्देश्य उनके अपने-अपने क्षेत्रों में हिंदी शिक्षण और हिंदी के प्रसार में आने वाली कठिनाइयों का समाधान खोजना है। सम्मेलन ने इसकी सराहना करते हुए इस बात पर बल दिया कि इस कार्य को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
9. विश्व हिंदी सम्मेलनों में भारतीय और विदेशी विद्वानों को सम्मानित करने की परंपरा रही है इस विशिष्ट सम्मान के अनुरूप ही इन सम्मेलनों में विद्वानों को भेंट किए जाने वाले पुरस्कार अथवा सम्मान को गरिमापूर्ण नाम देते हुए इसे 'विश्व हिंदी सम्मान' कहा जाए।
10. विगत में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलनों में पारित प्रस्ताव को रेखांकित करते हुए हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्रदान किए जाने के लिए समय-बद्ध कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
11. दो विश्व हिंदी सम्मेलनों के आयोजन के बीच यथासंभव अधिकतम तीन वर्ष का अंतराल रहे।
12. 10वां विश्व हिंदी सम्मेलन भारत में आयोजित किया जाए।
दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन
भोपाल, भारत दिसम्बर, 2015
१०वें विश्व हिन्दी सम्मेलन का मुख्य विषय "हिन्दी जगत : विस्तार एवं संभावनाएँ"
http://www.vishwahindi.com/hi/whc10.aspx
पारित प्रस्ताव:
1. विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान देश-विदेश से अनेक विद्वानों, हिंदी मनीषियों एवं अन्य प्रतिभाशाली विशेषज्ञों ने १२ चयनित विषयों पर समानन्तर सत्रों में गहन चर्चा के पश्चात जो अनुशंसाएँ की हैं, विदेश मंत्रालय एक विशेष समीक्षा समिति गठित कर उन अनुशंसाओं को यथोचित कार्यवाही हेतु विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों को अग्रेषित करे।
2. ११वें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन सन् २०१८ में मॉरीशस में किया जाए जिस दौरान वहाँ स्थित विश्व हिंदी सचिवालय के नए भवन का औपचारिक उद्घाटन भी किया जाए
एंड्रॉयड एप्लिकेशन "दृश्यमान" पर उपलब्ध हुईं विश्व हिंदी सम्मेलन की झलकियाँ
हिंदी की ख़ातिर एक छत के नीचे जुटे माइक्रोसॉफ़्ट, गूगल और एप्पल
हिन्दी भाषी लोगों के लिए हिंदी में आएगी सोशल नेटवर्किंग साइट "मूषक"
आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
– सादर
सुमन कुमार घई
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