प्रथम संपादकीय

01-02-2015

प्रथम संपादकीय

सुमन कुमार घई

प्रिय मित्रो,

बरसों से साहित्य कुंज का प्रकाशन करता आ रहा हूँ परन्तु एक बार भी संपादकीय लिखने के बारे में सोचा ही नहीं, हालाँकि समय-समय पर मित्र इस स्तंभ के लिए प्रोत्साहित करते और उकसाते रहे हैं। इस अंक से अन्ततः आरम्भ कर रहा हूँ। इसका एक कारण हिन्दी की पुस्तकों का "ई-बुक" के स्वरूप में प्रकाशन के बारे में अपने विचारों को आपसे साझा करना है।

विश्व में लगभग सभी भाषाओं की पुस्तकों के प्रकाशन का माध्यम बहुत गति से बदल रहा है। प्रकाशन जगत नई तकनीकी को अपनाते हुए ई-बुक की ओर अग्रसर हो रहा है। इसके कई कारण हैं जिनमें मुख्यतः पुस्तक प्रकाशन की कम लागत और वितरण में आसानी हैं। इन्हीं कारणों से इन पुस्तकों की कीमत भी मुद्रित पुस्तकों के मुकाबले में बहुत कम होती है। यह अवश्य है कि इन पुस्तकों के खरीददारों को कोई उपकरण यानी ई-रीडर, टैबलेट या स्मार्ट फोन खरीदना पड़ता है, परन्तु इनकी कीमतें भी दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही हैं। हालाँकि ई-बुक आप पीसी या लैपटॉप पर भी पढ़ सकते हैं परन्तु इनकी तुलना में अन्य उपकरण अधिक सुविधापूर्ण रहते हैं। ई-पुस्तक को मैं ई-रीडर पर पढ़ने के अधिक हक में हूँ। क्योंकि मेरा झुकाव तकनीकी की ओर है सो मैंने स्वयं यह सब कुछ इकट्ठा कर रखा है और नियमित इनका उपयोग भी करता हूँ। यद्यपि टैबलेट और ई-रीडर का आकार लगभग बराबर का होता है, पर ई-रीडर हल्का होता है और इसकी बैटरी देर तक चलती है। अक्सर यात्रा के समय मेरा पुस्तकालय मेरे साथ चलता है, क्योंकि ई-रीडर में हज़ारों पुस्तकें स्टोर की जा सकती है। मुझे खेद यह रहा है कि हिन्दी की साहित्यिक पुस्तकों के ई-संस्करण उपलब्ध नहीं हैं और यह बात मुझे कचोटती रही है।

ई-पुस्तक प्रकाशन के बारे में मेरी खोज तीन-चार साल से चल रही थी और सोच रहा था कि इस प्रकाशन के लिए मुझे नई तकनीक सीखनी पड़ेगी और मैं अध्ययन आरम्भ भी कर चुका था। एक दिन मेरे मित्र स्टेनले परेरा, जो स्वयं सॉफ़्टवेयर कंपनी के मालिक हैं, ने साहित्य कुंज की बात करते हुए कहा, "सुमन जी मैं आपके लिए कुछ करना चाहता हूँ।" मेरा उत्तर था, "स्टेनले जी सॉफ़्टवेयर आपकी रोज़ी-रोटी है और साहित्य कुंज मेरा प्रेम-परिश्रम है। इससे आप कुछ भी कमा नहीं पाएँगे क्योंकि यह अव्यवसायिक है।"

सही अवसर समझते हुए मैंने हिन्दी की ई-पुस्तकों के बारे में अपने विचार प्रगट किए तो उन्होंने उत्साहित होते हुए कहा – सुमन जी यह काम मेरे पर छोड़िए क्योंकि मेरा तो यह काम है ही, आप इसका साहित्यिक पक्ष देखिए और मार्ग दर्शन कीजिए कि आप क्या चाहते हैं। मैंने कहा कि बहुत समय से मुझे एक अन्य बात कचोटती रही है कि हिन्दी का लेखक अक्सर अपनी पुस्तकों का अपनी जेब से पैसा खर्च करके प्रकाशन तो करवाता है परन्तु लेखन से कुछ कमा पाने की संभावना नहीं होती। इसका दोष मैं प्रकाशकों को भी नहीं देता क्योंकि मुद्रण की लागत ही बहुत होती है। मैंने स्पष्ट किया कि मेरा विचार है कि जो भी वेबसाईट बने वह साहित्य कुंज से हट कर बने। यह ऐसा मंच हो जहाँ लेखकों की पुस्तकें बिकें और वह कुछ कमा सकें। हिन्दी राइटर्स गिल्ड की स्थापना करते हुए हमारा मुख्य सिद्धांत यही था और इसका पालन भी हम करते रहे हैं। हिन्दी राइटर्स गिल्ड की प्रकाशित पुस्तकें निशुल्क नहीं बाँटी जातीं बल्कि बेची जाती हैं। इसी सिद्धांत को अपनाते हुए मैंने और स्टेनले ने पुस्तकबाज़ार.कॉम की नींव रखी है।

पुस्तकबाज़ार.कॉम की वेबसाईट पर हिन्दी की विभिन्न विधाओं की पुस्तकों के ई-बुक संस्करण बेचे जाएँगे। ई-पुस्तकें विभिन्न ई-रीडर्स के फ़ॉर्मेट्स में उपलब्ध होंगी। पुस्तक की बिक्री का 70% लेखक/लेखिका को मिलेगा। पुस्तकबाज़ार.कॉम में पूर्ण पारदर्शिता होगी यानी लेखक/लेखिका अपने एकाउंट के पन्ने पर किसी भी समय अपनी पुस्तकों की बिक्री की जानकारी देखने के लिए सक्षम होंगे। पैसे का सारा लेने देन Paypal द्वारा होगा। लेखक/लेखिका को अपनी पाण्डुलिपी हिन्दी के यूनिकोड या किसी अन्य प्रचलित फ़ॉण्ट में माइक्रोसॉफ़्ट वर्ड फ़ॉर्मेट में भेजनी होगी और उन्हें Paypal में एकाउंट खोलना होगा।

वेबसाईट लगभग तैयार हो चुकी है और अब मेरा ध्यान अच्छी पुस्तकों को प्रकाशन के लिए एकत्रित करने की ओर केन्द्रित है। इस काम के लिए मुझे आप लोगों की सहायता की भी आवश्यकता है। हम सब लोग हिन्दी साहित्य और भाषा प्रेमी हैं। इसलिए हमारा दायित्व हो जाता है कि हम हिन्दी साहित्य को विश्व मंच पर हर विधा और साधन से उपलब्ध करवाएँ। आप सभी लेखक आमन्त्रित हैं। और अधिक जानकारी के लिए या अपनी पुस्तकों के प्रकाशन संबधित बातचीत के लिए कृपया info@PustakBazar.com ई-मेल लिखें।

– सादर
सुमन कुमार घई

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