हिन्दी वर्तनी मानकीकरण और हिन्दी व्याकरण
सुमन कुमार घईप्रिय मित्रो,
जो लोग मेरे सम्पादकीय पढ़ते रहे हैं वह मेरी हिन्दी भाषा के बदलते स्वरूप से जनित पीड़ा से अवगत हैं। पिछले दिनों मेरी मित्र और साहित्य कुञ्ज में अपने साहित्यिक परामर्श से योगदान देने वालीं डॉ. शैलजा सक्सेना से वर्तनी के बारे में विचार विमर्श कर रहा था। विषय था “जाये” सही या “जाए” इसी शृंखला में खाये, लाये, निभाये… इत्यादि आ जाते हैं। उन्होंने मुझे बताया कि इस विषय पर इंटरनेट पर खोजते हुए वह वीकिपिडीया के “हिन्दी वर्तनी मानकीकरण” के पृष्ठ पर गईं और वहाँ पर बहुत सी जानकारी उपलब्ध है। इस पृष्ठ की बाहरी कड़ियों पर भी क्लिक करने से विस्तारपूर्ण जानकारी मिलती है। वास्तव में यह नियम एक आयोग द्वारा निर्धारित किए गए हैं। हमें चाहिए कि हम इस विस्तृत आलेख को पढ़ें और इन नियमों को अपनाएँ, तभी शुद्ध हिन्दी को हम इंटरनेट पर ला सकेंगे और इसका प्रयोग अपने दैनिक जीवन में भी कर सकेंगे। यह काम हमीं लोगों को ही करना होगा क्योंकि जो समाचार पत्र और पत्रिकाएँ मुझे पढ़ने को मिल रही हैं, उनसे तो सुधार की आशा रखना ही स्वयं को धोखा देना होगा।
इस आलेख को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि मैं सभी नियमों से सहमत होने में कठिनाई अनुभव कर रहा हूँ, क्योंकि जो मुझे स्कूल में पढ़ाया गया और जिन नियमों का पालन मैं अभी तक करता आया हूँ तो वह ग़लत क्यों हो गए? निरंतर चिंतन के बाद समझ में आया कि इस आयोग ने कुछ प्रचलित लेखन की प्रथाओं को अपनाकर उन्हें सही घोषित कर दिया है। यानी अगर बहुत से लोग किसी ग़लत वर्तनी का उपयोग करते रहे हैं वह अब सही या समानन्तर वर्तनी सिद्ध हो गई है। हम संयुक्त अक्षरों का प्रयोग करते रहे हैं, परन्तु इस आयोग ने एक और चिह्न को मान्यता दी है वह है “हल्” का चिह्न। बल्कि उन्होंने हलन्त को अब “हल्” कहा जाए। यह चिह्न शब्द के बीच में आकर संयुक्त अक्षरों को अलग-अलग कर देता है। यूनिकोड की मंगल फ़ांट ने तो इसे बहुत पहले से अपना लिया है। परन्तु गूगल की हिन्दी यूनिकोड फ़ांट्स अभी भी इसे पुराने ढंग से ही संयुक्त अक्षर दिखा रहीं हैं।
आप लोगों से आग्रह है कि इस आलेख और इसकी बाहरी कड़ियों को अवश्य पढ़ें और अपने हिन्दी प्रेमी मित्रों को भी इसके बारे में बताएँ।
इसके बाद मन में आया कि क्यों ने वीकिपीडिया पर हिन्दी व्याकरण के बारे में पढ़ा जाए। “हिन्दी व्याकरण” की खोज करते ही “हिन्दी व्याकरण” का पृष्ठ खुल गया। यहाँ पर भी जानकारी उतनी ही विस्तृत है जितना की हिन्दी वर्तनी मानकीकरण के पृष्ठ पर। मेरे लिए मानों एक बहुमूल्य संपत्ति हाथ लग गई। विदेश में रहते हुए हिन्दी व्याकरण की पुस्तक खरीदना एक लॉटरी की टिकट ख़रीदने के बराबर है। अधिकतर जो पुस्तकें मेरे हाथ लगी हैं, उन्हीं में ग़लतियाँ हैं तो मैं क्या सीख पाऊँगा उनसे? साहित्य कुञ्ज पर जब मैंने मुख्य पृष्ठ पर हिन्दी व्याकरण के कुछ लिंक दिए तो भारत से मेरे मित्र रामेश्वर काम्बोज “हिमांशु” जी ने मेरा ध्यान इन लिंक्स की सामग्री की ओर दिलाया और बताया की इन साइट्स की जानकारी त्रुटिपूर्ण है। ऐसे में वीकिपीडिया की जानकारी मुझे एक गड़ी सम्पत्ति के मिल जाने वाली प्रसन्नता दे, तो वह स्वाभाविक है।
आप लोगों में से बहुत से विद्वान और विदुषियाँ हैं जिन से मैं बहुत कुछ सीख सकता हूँ। आप लोगों से विशेष अनुरोध है कि आप वीकिपीडिया के इन पृष्ठों को पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया भेजें और इन पृष्ठों की उपयोगिता के बारे में अपने विचारों को बाक़ी के पाठकों के साथ साझा करें।
आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
- सादर
सुमन कुमार घई
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