विशेषांक: फीजी का हिन्दी साहित्य

20 Dec, 2020

फीजी में हिंदी के विकास का प्रलेखन

पुस्तक समीक्षा | भावना सक्सैना 

19वीं सदी के अंत व 20वीं सदी के आरंभ में पूर्वी उत्तर प्रदेश के आचंलिक क्षेत्रों से रोजी-रोटी की तलाश में अनुबंधित श्रमिक के तौर पर सात समुंदर पार फीजी गए भारतीय मूल के लोगों ने आरंभ में अत्यधिक कष्ट झेले किंतु उन्होंने फीजी को सजाया, संवारा और संपन्न किया आज इन गिरमिटियों की तीसरी-चौथी पीढ़ी फीजी देश में में सुप्रतिष्ठित है, सुशिक्षित है और संपन्न है। विदेशी भूमि पर बहुजातीय देश में विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के बीच भारतीय मूल के इन लोगों ने अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित रखा है। भारतीय मूल के लोग वहाँ जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग है और हिंदी को दो रूपों में बोलते हैं पहला रूप आम बोलचाल की हिंदी का है और भारतीय उसका मातृभाषा के रूप में बड़ी सहजता से परिवार के साथ प्रयोग करते हैं यह वह रूप है जिसका विकास फीजी के भारतीयों के मध्य हुआ है। हिंदी का दूसरा रूप औपचारिक हिंदी का है जो संस्कृत निष्ठ, परिनिष्ठित हिंदी है। 

फीजी में हिंदी के स्वरूप और विकास का विवेचन तथा वहाँ के साहित्य और साहित्यकारों को प्रलेखित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है भारत के लब्ध प्रतिष्ठित भाषा वैज्ञानिक डॉ विमलेश कांति वर्मा जी ने। डॉक्टर वर्मा की फीजी पर दो पुस्तकें हैं फीजी में हिंदी स्वरूप और विकास तथा फीजी का सृजनात्मक हिंदी साहित्य; फीजी में हिंदी के विकास और साहित्य को जानने के लिए यह दोनों पुस्तकें ही अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 

कृति: फीजी में हिंदी -स्वरूप और विकास 
लेखक: डॉ. विमलेश कांति वर्मा
प्रकाशक: पीतांबरा प्रकाशन
मूल्य: 200 रुपए

 

पहली पुस्तक फीजी में हिंदी स्वरूप और विकास की सह-लेखिका श्रीमती धीरा वर्मा हैं। यह पुस्तक तीन खंडों में विभाजित है जिसके प्रथम खंड में फीजी में हिंदी के स्वरूप और विकास का 10 अध्यायों में विस्तृत विवेचन और विश्लेषण है। दूसरा खंड सीजी के हिंदी कवियों की रचनाओं का काव्य संचयन है और तीसरा खंड परिशिष्ट है जोशी जी के प्रवासी भारतीयों द्वारा विकसित हिंदी की विशिष्ट भाषिक शैली  फीजी बात से संबंधित है।

यह पुस्तक फीजी में हिंदी का समग्र तटस्थ और विश्लेषणात्मक मूल्यांकन है। फीजी में साहित्यिक हिंदी की एक लंबी परंपरा रही है हिंदी का यह साहित्यिक व शुद्ध रूप शिष्ट जनों तक ही सीमित है। लेखक के अनुसार अनेक आरंभिक रचनाएँ संरक्षण के अभाव में आज उपलब्ध नहीं हैं। लेखक के अनुसार इस संचयन के लिए फीजी में प्रकाशित छोटी-छोटी पत्रिकाओं तथा पुरानी फाइलों का ही सहारा है। इन रचनाकारों की रचनाओं के संबंध में लेखक का यह कथन समीचीन है “फीजी में बसे प्रवासी भारतीयों की साहित्यिक रचनाएँ संभवत शिल्प की दृष्टि से चाहे विद्वानों को आकृष्ट न कर सके किंतु यह कहना असंगत ना होगा कि प्रवासी भारतीयों की हिंदी कविताएँ यद्यपि बहुत ऊँचे साहित्य की प्रायः नहीं है फिर भी अनेक कवि निरंतर हिंदी में काव्य लेखन के प्रयोग कर रहे हैं अच्छी कविताएँ लिख रहे हैं और अपने भावों की सफल अभिव्यक्ति भी कर पा रहे हैं।

 प्रवासी भारतीयों की रचनाओं पर इस तरह का मूल्यांकन व दृष्टिकोण ही उन्हें न्याय दिला पाएगा पुस्तक के दूसरे खंड में लेखक ने कवियों के विस्तृत रचना संसार से काव्य संचयन प्रस्तुत किया है जो लेखक के गंभीर अध्ययन-मनन का प्रतिफल है।

 

कृति: फीजी का सृजनात्मक हिंदी साहित्य 
संपादक: डॉ. विमलेश कांति वर्मा
प्रकाशक: साहित्य अकादमी, नई दिल्ली
मूल्य-200 रुपए

 

फीजी पर डॉ. विमलेश कांति वर्मा की दूसरी पुस्तक फीजी का सृजनात्मक हिंदी साहित्य भारत में साहित्य के सक्रिय विकास के लिए कार्य करने वाली राष्ट्रीय संस्था, साहित्य अकादमी से प्रकाशित हुई। यह फीजी द्वीप समूह के प्रतिष्ठित हिंदी लेखकों की चुनी हुई रचनाओं का पहला प्रामाणिक संचयन है। यह संचयन न सिर्फ भारतीय पाठकों का फीजी के सवा सौ वर्षों के सृजनात्मक हिंदी साहित्य से परिचय कराता है अपितु हिंदी के वैश्विक विस्तार और स्वरूप को समझने में भी सहायक है। यह संचयन फीजी के हिंदी साहित्य की मूल संवेदना- ‘प्रवास की पीड़ा’ को उकेरता है । संचयन के पूर्व ग्रंथ की भूमिका के रूप में दिया गया विस्तारपूर्ण साहित्यिक विमर्श फीजी के हिंदी साहित्य की संवेदना और शिल्प निरूपण के साथ साथ फीजी के हिंदी साहित्य की ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में व्याख्या और मूल्यांकन भी करता है। डॉ. वर्मा ने रचनाओं को विभिन्न काल-खंडों में बाँटकर रचना प्रक्रिया का विस्तार से मूल्यांकन किया है। 

इस संकलन की विशिष्टता है फीजी के भारतवंशियों द्वारा विकसित की गई हिंदी की विदेशी भाषा शैली फीजी बात (फीजी की हिंदी) में लिखी साहित्यिक रचनाओं और गिरमिट गीतों का संकलन। यह पुस्तक अच्छे सुव्यवस्थित व संगठित रूप में प्रस्तुत की गई है और शोधार्थियों के लिए बहुत लाभदायक रहेगी। काव्य व गद्य दो खंडों में बंटा यह संचयन फीजी के प्रतिष्ठित साहित्यकारों यथा राष्ट्र कवि पं. कमला प्रसाद मिश्र, अमरजीत कौर, काशीराम कुमुद, कुँवर सिंह, हजरत आदम जोगिंन्दर सिंह कंवल, ईश्वरी प्रसाद चौधरी तथा अन्य कई हिंदी रचनाकारों की रचनाओं से व परिशिष्ट में रचनाकारों से संक्षिप्त परिचय कराता है। 

हिंदी के अंतरराष्ट्रीय प्रचार-प्रसार का दृढ़ संकल्प लिए डॉ. विमलेश कांति वर्मा टोरंटो विश्वाविद्यालय, कनाडा; सोफ़िया विश्वविद्यालय, बल्ग़ारिया और साउथ पेसिफ़िक विश्वाविद्यालय, फीजी में हिंदी भाषा और साहित्य का अध्यापन और विदेशी हिंदी शिक्षकों के प्रशिक्षण के अलावा विभिन्न विश्व हिंदी सम्मेलनों और क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलनों में सक्रिय सहभागिता कर चुके हैं। भारतीय राजनयिक के तौर पर आप फीजी स्थित भारतीय उच्चायोग में प्रथम सचिव (हिंदी और शिक्षा) के महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वाह कर चुके हैं।

पिछले चार दशकों से भी अधिक समय से निरंतर अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान, कोश निर्माण, पाठालोचन, अनुवाद और सांस्कृतिक अध्ययन के क्षेत्र में अपनी देश-विदेश में सशक्त उपस्थिति दर्ज़ कराने वाले डॉ. विमलेश कांति वर्मा की भारतीय लोकवार्ता और प्रवासी भारतीय हिंदी साहित्य के अध्ययन और अनुसंधान के अलावा विदेशी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण में विशेष रुचि रही है। डॉ. वर्मा ने विदेशियों के लिए हिंदी के विविध स्तरीय पाठ्यक्रमों का निर्माण करने के साथ-साथ प्रभावी शिक्षण विधियों का भी विकास किया और स्तरीकृत शिक्षण सामग्री भी तैयार की। आपने विशेषतः फीजी, मॉरिशस, सूरीनाम और दक्षिण अफ़्रीका में प्रवासी भारतीयों द्वारा रचे जा रहे सृजनात्मक हिंदी साहित्य की विशिष्ट भाषिक शैलियों पर गंभीर अध्ययन-अनुसंधान किया है। 


 

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