आज कपड़ा पुराना मैंने फेंक दिया
जन्म से पहले जिसमें लिपटा था
सच है बाद में उसी में सिमटा था
आज वह लाचार हुआ
मेरे कंधों का भार हुआ
मैंने फेंक दिया
जब भी मैं था भय से काँपा
बन लौह कवच उसने ढाँपा
समय से वह तार तार हुआ
मेरे लिए बेकार हुआ
मैंने फेंक दिया
मुझ्रे सहेज अलगनी पे टाँगता रहा
खुद ज़मीं पर बिछ मेरी दुआ माँगता रहा
विपथ पर तन दीवार हुआ
मुझे कहाँ स्वीकार हुआ
मैंने फेंक दिया
रेशमी लिहाफ में पैबन्द पुराना था
योगदान उसका अतुल्य
कहता ज़माना था
भैय्या जीवन के नये समीकरण है
वह तो घाटे का बाज़ार हुआ
भला यह कोई व्यापार हुआ
मैंने फेंक दिया
आज कपड़ा एक पुराना
मैंने फेंक दिया
आज कपड़ा एक पुराना मैंने फेंक दिया... क्या बात कही आपने सर। चरण स्पर्श