मानवता

07-06-2017

वह कीचड़ में गिरी लिथरी पड़ी रही। नज़रें राहुल को ढूँढ रही थीं, मगर राहुल का कहीं पता न था। वह उसे छोड़ कब का आगे निकल चुका था, इतनी तेज़ी में कि पलटकर देखने की भी ज़रूरत नहीं समझी। उसकी आँखों में आँसू आ गए। चोट के दर्द के कारण चाहकर भी उठ नहीं पा रही थी। रात के नौ बज चुके। भीड़-भाड़ और गाड़ियों की चिल्ल-पों के साथ निरंतर आवाजाही से उसके सिर में दर्द हो रहा था। वह राहुल का हाथ थामकर सड़क पार करना चाहती थी, लेकिन राहुल उसे झिड़की देता हुआ आगे बढ़ गया था और वह लड़खड़ाते पैरों से राहुल के पीछे-पीछे चलती हुई कब बहुत पीछे रह गई, उसे पता ही न चला। जबतक सँभलती, पैर कीचड़ में धँस चुके थे और वह धम्म से जा गिरी थी।

वह चीखना चाहती थी, मगर कंठ अवरुद्ध हो गया था। दिमाग़ चक्कर खाने लगा कि जिसके लिए घर-परिवार, जात-बिरादरी यहाँ तक कि वह प्रदेश ही छोड़ दिया, वही राहुल अपने परिवार और बिरादरी की ख़ातिर उस खून के आँसू रुला रहा है। उसका प्रेम क्रूर होने लगा और बात-बात पर आक्षेप, व्यंग्य और लांछन लगाना राहुल के लिए आम बात हो गई। अभी भी उसकी हालत को राहुल ने बहाना समझकर झिड़क दिया और...। गिरने से शरीर पर लगी चोट से कहीं अधिक मनोव्यथा उसे पीड़ित करने लगी। दस मिनट बीते न होंगे कि एक नवयुवक ने झुककर उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाया और स्नेहिल शब्दों में कहा, "आप घबराएँ नहीं। मैं आपको घर तक छोड़ दूँगा।"

"मगर मैं..."

वह आगे बोल न सकी। नवयुवक ने अपने कपड़े गंदे होने की परवाह किए बिना उसे सहारा देकर उठाया और सड़क पार कराता हुआ उसे आश्वस्त करता रहा कि वह बड़ी दुर्घटना से बच गई और इसके लिए उसे ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए। वह, उलीचे हुए ज़ख़्म पर स्नेहिल शब्दों का मरहम पाकर आश्वस्त होने लगी। उसने ईश्वर को मन ही मन नमन किया। रिश्तों की व्यावहारिकता पर उसकी सोच गहरी होती, इतने में युवक ने इशारे से रिक्शा बुलवा दिया और उसे सहूलियत से बिठाते हुए फिर पूछा, "आप अकेली चली जाएँगी ना !"

"हाँ" से अधिक वह फिर बोल ना पाई। इतनी भाव विह्वल हो गई कि न नाम पूछा, ना धन्यवाद दिया। युवक उसकी माटी सनी हथेलियों को थपथपाते हुए कहा, "टेक केयर" और देखते ही देखते आँख से ओझल हो गया। रास्ते भर वह सोचती रही कि यह क्या था— एक साधारण दुर्घटना; एक मानसिक अव्यवस्था का परिणाम या उस नवयुवक के रूप में मानवता का नया रूप? राहुल जैसे सभ्य और लब्धप्रतिष्ठित लोग जिसके समूल नष्ट होने की बातें करते हैं।

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