ख़बरों में बदलाव
नरेंद्र श्रीवास्तवकहीं कुछ होता है
तो
ख़बरें
कितने बदली-बदली मिलती हैं
टेलीविज़न से कुछ
अख़बार से कुछ
दूसरे शहरों में बसे रिश्तेदारों से कुछ
पड़ोसियों से कुछ
स्कूल से लौटे बच्चों से कुछ
बाज़ार से कुछ
फ़ेसबुक से कुछ
वाट्सऐप से कुछ
क्या ख़बरें सुविधा से
बनने - सँवरने लगीं हैं
भय से
भक्ति से
प्रेम से
नफ़रत से
पैसों से
दबाव से
कुछ तो है
ज़रूर
जिससे
ख़बरें छनकर आ रही हैं
छलकर रही हैं
छद्म हो रही हैं
बड़ा अटपटा लगता है
एक ही ख़बर
अलग-अलग रूप में
पीड़ित से अलग ख़बर
आरोपी से अलग ख़बर
गवाह से अलग
पुलिस से अलग
नेता से अलग
पक्ष सेअलग
विपक्ष से अलग
ऐसे में
पीड़ित,
दर्शक,श्रोता और पाठक
भ्रमित हैं
बैचेन हैं
भयभीत हैं
और ...
निदान...?
न्याय...?
असफल है
अधूरा है।
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