कल शाम खिलौनों के कबाड़ में टूटे–फूटे खिलौनों के बीच तुड़ा-मुड़ा, सिमटा-सा मेरा बचपन मुझे मिल गया और मैं उसे ओढ़ कर फिर से, उछलती-कूदती नृत्य करती जीवंत गुड़िया बन गई।